________________
दूसरे जीवों के साथ अच्छा व्यवहार कीजिए
(शिवनारायण सक्सेना, एम० ए०)
व्यक्ति समाज में रहता है, बिना समाज के उसका काम चाहते। कहाँ तक इस देश के इतिहास की गौरव मन्त्री नहीं चल सकता, साधू सन्यासियों तक को किसी न किसी गाथाएं बताएं, यहां के लोगों ने शत्र बों की सेना तक को प्रकार समाज पर निर्भर रहना पड़ता है। इसलिए मनुष्य सहायता पहुँचाकर प्रादर्श उपस्थित किया है। सन् १८२८ को सामाजिक प्राणी कहा जाता है। समाज की सबसे छोटी की बात है गोदावरी नदी के किनारे बाजीराव पेशवा और इकाई परिवार है जो राज्य का ही एक बदला हुमा रूप है, निजामुल्मुल्क के बीच घमासान युद्ध चल रहा था, मुसखाइसमें सभी एक दूसरे के दुःव सुम्ब में सम्मिलत होते हुए मानों की बुरी तरह हार हुई, खाने पीने तक का सामान अपने कर्तव्यों को समझने, संवा करना तथा सभी प्रकार समाप्त होने लगा जिससे अनेक पैनिक मौत के मुंह में की सहायता करना ही प्रत्येक मदम्य का लक्ष्य होता है। जाने लगे, इसी बीच मुसलमानों का पर्व भी निकट मा यदि छोटे होने पर माता-पिता-भाई बहिन की सेवाएँ, धन, गया, अन्न के प्रभाव से मुसलमानों की बुरी स्थिति होने और महायता प्राप्त करते है तो उनकी सेवा करने का भार लगी । निजाम ने पेशवा से अन्न समाप्त हो जाने और भी हम पर प्राता है इसलिए एक हाथ धादि लेने के लिये भूखे, मरने की खबर दूतों के हाथ भेजी। इस सूचना को खुला रहता है तो दूसरे हाथ से देते भी हैं। प्रानन्द जो पापेशवा ने मंत्रियों से सलाह ली मंत्री बोले 'अच्छा देने में है वह लेने में नहीं, बालक जब जन्म लेता है तो अवसर प्राया है, इस समय प्राक्रमण करके शत्रुषों के दांत माता-पिता सुभाव प्रस्त रहकर भी उसका पालन पोषण कर ख? किये जा सकते है, योग्य व्यक्ति तो ऐसे अवसरों में प्रसन्नता और प्रानन्द का अनुभव करते है यदि माता-पिता मोकों में रहते हैं। अतः श्रीमन, इम पुण्य अवसर का लाभ जन्म देकर ही उसे छोड देने तो उसकी क्या स्थिति होती, हम लोगों को भी उठाना चाहिए । अन्न न भेजकर उनपर इस कल्पना मात्र से ही हमारे हृदय में भय उत्पन्न हो हमला करना चाहिए, पेशवा ने मुनने को नो पात मंत्रियों जाता है । कहने का मतलब यह है कि परिवार के सम्बन्धियों की सुनली, पर लगी बडी बुरी क्योंकि मग्रियों की सलाह क और पामियों के सहयोग, सेवा, और महायता पर ही में स्वार्थ परता की गन्ध प्रारही थी, पेशवा ने यही कहा" घरे होने है। सम्बन्धों की प्रामीयता, तथा ममत्व की हमारी सबसे बड़ी कायरता होगी यदि भूख से मरती सेना अधिकता ही माता को अपने पुत्र की पीड़ा अपनी पीड़ा को हम किमी प्रकार की पहायता न दें, इसलिए मंत्रियों ने अनुभव हानी है । पर हमारा यह प्रेम, यह ममत्व संकुचित नौकरों को बुलाकर शीघ्र ही अन्न भण्डार से अन्न निकाल दायर में बन्धा हुअा है, ठीक है यहीं तो हमारे प्रेम का कर मुसलमान सैनिकों की रक्षा करो "इसका परिणाम पौधा बड़ा होता है, इसे खाद, जल, और प्रकाश देकर जगतविदित है, निजाम ने कृतज्ञता प्रकट की और अन्त में भागे भी बड़ाना है, अपना दष्टि कोण बदलना है, परिवार पेशवा से मन्धि करली। का जो प्रेम है उसे पड़ोसियों, गांव, नगर, जिला, प्रान्त सभी को अपने समान मानने की भावना सब लड़ाई
और राष्ट्र के स्तर तक बढ़ाना है, महापुरुषों के जीवन को मंगई, हिमा, क्रोध, हुँश और प्रतिशोध का अन्त कर गहराई से जब हम देखते है तो उन्हें भूतल अपना देगी, अपने गोरग्ब धन्धे में लगे रहने वाले स्यक्ति समाज परिवार जान पड़ता है, प्रामीयता को राष्ट्र नक लाकर में कभी श्रद्धा नहीं पातं, जो अपने लिये ही खाने, कमान भी हमें आप नहीं बैठना है फिर तो 'जय जगत' या विश्व. और जीवित रहने येतो निम्न कोटिक प्राणी फिर बंधुत्व' की भावनों को अपनाना होगा।
उनमें पशुओं में अन्तर ही क्या रहता है ? दूसरों को भूम्या परिवार में जैसे एक व्यक्ति को दूसरे के दुःख में दबकर अपने मामने से जो भोजन की पानी हटा देना है दुखी और सुम्य में प्रसन्न होते देखते हैं वैसे तम्वदर्शी और वही तो सरचा प्रेमी और दयालु कहलाता है, राजा रन्तिदेव पमाज सुधारक राष्ट्र की चिन्ता में व्याकुल रहते हैं वह स्वयं भूग्वे रहकर भी दमरों को दान देते और सहायता किमी को भूम्या, नंगा, प्रशिक्षित और बीमार देखना नहीं करने, ४८ दिन तक जल पीकर रहने वाले रन्तिदेव