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प्रमेकाम्न
चलाया है। इन दो गांधी भक्तों ने एक दूसरे का विरोध और अफ्रिका के उदीयमान राष्ट्रों का वे प्रेरणा स्थान बने कहीं भी नहीं किया, तनिक भी होने नहीं दिया। इससे थे। यूरोप अमरीका के वैभव सम्पन्न देशों के कर्णधारों गांधी जी की उदार शिक्षाका माहात्म्य सिद्ध होता है। तर्क को जवाहरलाल जी की सलाह की कदर करनी पड़ती थी। दृष्टि से परस्पर विरोध दीख पड़ने वाली नीतियों समन्वय पक्षपात रहिन विश्व हित की, उनकी कामना, युद टालकर वृत्ति से परम्पर पोषक हो सकती हैं, यह बात राष्ट्र और शान्ति की स्थापना करने का उनका प्राग्रह, छोटे बड़े सब दुनिया देख सके हैं। आगे जाकर इन दो नीतियों में व्यक्ति और राष्ट्रों का ग्वातंज्प भी रक्षा करने का उनका समझौता हो सकेगा। और राष्ट्र के लिये एक सार्वभौम निश्चय और विश्व मांगल्य के सर्वोरच आदर्श पर भी नीति फलित होगी।
उनकी निष्ठा यह सब कुछ भारतीय संस्कृति के जैसा ही दूसरे विचारों में भी काफी नथ्य हो सकता है और भव्य था । उस रास्ते जात भी देश का थोदा बहन हित ही हो सकता लोग कहते हैं कि जवाहरलाल जी को मनुष्य की है। ऐसा समझने की उदारता और नम्रता ही प्रास्तिकता परम्ब कम थी। लोगों पर विश्वास रखने में धोखा खा का एक स्वरूप है। यही समन्वय युग अब अपना काम सकते थे। यह बान मही हो तो भी क्या मनुष्य अपने करेगा।
इर्द गिर्द जमी दुनिया हो, उसी से काम ले सकता है। जवाहरलाल जी की तुनुक मिजाजी सब जानते थे। विश्व में काम करने वाली सर्वशक्तियों का अगर सरचा वह क्षण जीवी होती है, यह भी सब जानते थे । और परिचय है और अपने पर पृग पुरा वश्वास है । तो जैसे इसीलिये थोड़ा समय उसका बुग लगा तो भी मब भी मनुष्य मिले उनसे काम लेने की हिम्मन भागग्यशाली माथी भूल जाते थे। काफी प्राग्रह करने के बाद अपनी मनुष्यों में श्रा जाती है। सफलता और विफलता दोनों को बात छोड देना और राष्ट्र को स्वतंत्र विचार करने का मौका मंजर रख के उनमें में अपना राम्ता निकालने की तैयारी देना, यह था जवाहरलाल जी की नीति का एक विशेष जिनकी है, उन्हीं के लिये यह दुनिया है। रूप । ऐसी नीति ये ही चला सकते हैं, जिनका व्यक्तित्व आग्विरकार व्यक्ति का पुरुषार्थ और परिस्थिति का विशाल है। और जिनका अपने देश पर पूग पुरा विश्वास जोर इन दोनों के बीच कभी संघर्ष और कभी सहयोग
चलता रहता है । यही तो विश्व का नाटक है। ऐसे नाटक जवाहरलाल जी के मन में किसी के प्रति हूंषभाव भी
में महान कार्य करके दिग्बाना और एक महान संस्कृति घर महीं कर सकता था। यह भी उनकी एक विशेषता
समृद्ध राष्ट्र को उन्नति के गम्त ले जाना यही तो भाग्यथी। महानता का यह भी एक विरला लक्षण है। और शाली व्यक्ति कपुरपार्थ का लक्षण है। जवाहरलाल जी परमभाग्यशाली तो थे ह।। मोतीलाल सचमुच जवाहरलाल जी ने अपने जमाने पर अपने जी जैसे पिता का पुत्र होमा, गांधी जी जैसे महात्मा के व्यक्तित्व की मुहर लगायी। और इतिहास विधाता की विश्वास का पात्र बनना और चालीस करोड़ जनता की सोची हुए क्रान्ति का रास्ता खुला कर दिया। महात्मा जी भक्ति का भाजन बनना मामुली भाग्य नहीं है। अशोक, ने सस्य और अहिंसा मूलक जो जीवन साधना राष्ट्रीय अकबर और औरंगजेब और लार्ड कर्जन, ये सब भन्यभाग पमाने पर शुरु की, उस साधना का व्यापक स्वरूप जवाहरके अधिकारी माने जाते हैं । जवाहरलाल जी का अधिकार लाल जी ने विश्व के सामने खड़ा किया और एक नास्तिक
और प्रभाव इन लोगों से कम नहीं था, और मारे विश्व दुनिया को प्रास्तिकता की झांकी करवाई। इसी कारण के साथ साधे हुए संपर्क की दृष्टि ने तो जवाहरलाल जी राष्ट्र पुरुष जवाहरलाल जी काफी हद तक विश्व पुरुष हो का स्थान इनसे कुछ अधिक ऊंचा ही हो गया था । एशिया सके ।
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