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युग पुरुष की भाग्यशालिता
(काका साहब कालेलकर) मवों के मुह से एक ही बात निकल सकती है कि श्री संभालकर पाने देने के दिन अब नहीं रहे. क्रान्ति की पूर्ण जवाहरलाल जी के साथ एक युग का अन्त होता है । मब यह तय्यारी का काम गांधी जी ने किया । आर्थिक और युगाभी कहते है कि जवाहरलाल जी ने शुरु से प्राज तक जो नुकुल नया मोड देने का काम जवहारलाल जी ने किया। नीति दृढ़ता से चलायी, वहीं भारत के लिये हितकर है। दोनों ने एक तरह से क्रान्ति की रफ्तार बढ़ाई। दूसरी मोर क्योकि वह नीति भारत के समूचे इतिहास में फलित हुई से राष्ट्र का मानम उम रफ्नार को सहन कर सके इसलिये है वह नीति भारत की संस्कृति के अनुसार ही है। और उसे कुछ रोका भी। अव परिस्थिति परिपक्व हुई है। क्रान्ति सबसे बड़ी बात तो जवाहरलाल जी की नीति हम लोगों की रफ्तार में अपना निजी वेग मा गया है। अब राष्ट्र के वे स्वभाव के साथ पूरा-पूरा मेल खाती है।
अधिकारियों का समुदाय उसे रोकने की कोशिश करेगा तो जब जवाहरलाल जी की नीति इस तरह हिनकर और भा उसका चलेगा नहीं। बाहर की दुनिया कोशिश करगा स्थिर है, और बही भागे चलानी है, तो उनके साथ किम कि भारत की नीति विशिष्ट गुट के लिये अनुकूल हो। चीज का अन्त होकर नये युग का प्रारंभ हो रहा है।
उन ग्रहों का प्रभाव हम पर हुए बिना रहेगा नहीं, लेकिन ___एक बात स्पष्ट है। गांधी जी के दिनों में हालांकि वे
भारत का और दुनिया का भला इसी में है कि सबका हमेशा मन्ब माथियों की राय लेते थे, और सब को संभाल
प्रभाव मंजूर करते हुए, व्यक्ति किसी एक तत्व के चंगुल में कर के ही अपना काम चलान थे, तब भी उनके मब पाथी
फंस न जाय । गांधी जी की राय समझकर अपना मन अक्सर उसी के
श्री जवाहरलाल जी ने गाँधी जी से शान्ति, विश्वमैत्री अनुकूल बना देते थे। जवाहरलाल जी का मानस ही हर
और अलिप्तता की दीक्षा ली थी । थोड़े ही दिनों में राष्ट्र का मानम होने के कारण उन्हीं की बात सब को
उन्होंने वह अपनी ही बनाली। और दुनिया की राजनैतिक मान्य रहती थी। चन्द बात बिलकुल नई हो, राष्ट्र को
परिस्थिति से वाकिफ होने के कारण उन्होंने वह नीति पसंद न हो. तो भी जवाहरलाल जी की धार में उनकी
दुनिया के संदर्भ के लिये अनुकूल बनाई। सूचना पाई है, इसीलिये लोग मान जाते थं इस विश्वास
बड़े-बड़े राष्ट्रीय महत्व के उद्योग भारत में शुरु किये से कि उसी में राष्ट्र का हित है।
बिना भारत का अर्थिक सामर्थ्य बढ़ेगा नहीं। दुनिया के
माथ चलने के लिये जो माधुनिकता जरूरी है, वह भारत एक के पीछे एक ओर से दो महापुरुषों का नेतृत्व में पायेगी ही। यह देखकर गांधी जी के जीते जी उन्होंने राष्ट्र को मिला। यह भारत का परम सौभाग्य है। अब वह नयी नीति चलायी। उसमें उनकी हिम्मत और उनका जब तक ऐसा ही कोटिका राष्ट्र पुरुष समूचे देश की बाग- स्वतंत्र-दर्शन प्रगट हमा। गांधी जी ने भी देख लिया कि दोर अपने हाथ में न ले । तब तक सबको मिलकर सोचना देशको उमी राम्न जाना है। इसलिये अपना प्राग्रह छोड़कर होगा और कन्यरत राय से बात तय करनी होगी । अब
जवाहरलाल जी को उन्हीं की पसंद की हुई दिशा में राष्ट्र किसी एक का नहीं चलेगा। सबका मिलकर चलेगा। को ले जाने उन्होंने रोका नहीं, अपने प्राशीर्वाद ही दिये।
समुच्चे राष्ट्र की तैयारी के लिये यही साधना अब गांधी जी की रचनात्मक नीति को और सर्वोदयी प्रथं प्रच्छी है। इसलिये सब कहते हैं कि एक युग पूरा हुमा। नीति को व्यापक बनाने का काम श्री विनोवाभावे ने चलाया।
मैं मानता है कि भारत में जो क्रांति शुरु हुई है, और और शुरु में भूदान, प्रामदान और शान्तिसेना के कार्यजो अपने ढंग की है। अब जोरों से चलेगी। उसे संभाल क्रम बढ़ा के नई जान सलने का मौलिक-प्रयत्न भी उन्होंने