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श्रध्दाञ्जलि
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बुद्धवार, दिनांक २७ मई १९६४ को, दिन के २ बज कर २० मिनट पर हृदय की धमनी फट जाने से, भारत के प्रधान मन्त्री पं. जवाहरलाल नेहरू का नई दिल्ली में स्वर्ग वास हो गया । वे केवल उच्चकोटि के राजनीतिज्ञ ही नहीं, अपितु एक महामानव भी थे। कोरी राजनीति विश्व के विनाश पथ पर ले जाती है तो कोरी मानवता एक प्रादर्श भर है, जिसका मनुष्य जाति की जीवन समस्याओं से कोई सम्बन्ध नहीं रहता। नेहरू जी के मानवीय पहलू ने समूचे विश्व को छुआ था। उनके निधन का समाचार 'करण्ट की तरह व्याप्त हो गया। और कोई दश ऐसा नहीं जो शोक-मन्तप्त न बना हो उनके दिवंगत होने से भारत के ही नहीं संमार के दिल को एक धक्का लगा है, जिसके सम्भलने में समय लगेगा। विश्व को ऐसा शक्रि-पुत्र शताब्दियों में उपलब्ध हुअा था, और अब शायद फिर शताब्दियों ही लगेगी।
उनकी शव यात्रा में २० लाग्य मनुष्य शामिल हुए। राजपथ पर जन समुद्र हिलोरे ले उठा। अपने प्यारे नेता को भरे दिल और गीली श्रग्विों से अन्तिम विदा दन व पाये थे। उनके हृदय वेदना संकुल थे किन्तु उन्होंने अडिग धैर्य और मजबूत कदमों में विदा दी। मा प्रतीत होना था जैसे जवाहरलाल की प्रेरणा प्रसूत मूर्ति अब भी सहम वर्षा की दासता से दुर्बल भारतीयों को अदम्य प्रेरणा दे रही हो और इसी कारण उनके कांपते दिलों ने भी जिस दृढता का परिचय दिया वह सब प्रशंसनीय है । एक विदेशी का यह कथन कि नेहरू ने एक मजबूत भारत छोड़ा है, मेरे कथन का यह साक्षी है।
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नेहरू जी अहिंसा और शान्ति के प्रतीक ही थे। उनके प्रयन्नों में ही यह संसार तीसरे युद्ध से बच सका, इसे सभी देश और उनके कूटनीतिज्ञ स्वीकार करते हैं । उन्होंने एटमबम्ब परीक्षण ग्रोर शस्त्रास्त्रों की होड़ को नितान्त त्यागने का आग्रह किया तो बडे देशों की जनता ने प्रसन्नता पुर्वक स्वागत किया। अमेरिका
और रूम का भय कर शीत युद्ध अल्पादपिअल्प हो सका इस पृष्ठभूमि में भी नेहरू जी विद्यमान थे । श्राज प्रेजीडेण्ट जोन्सन और खुश्चेव दोनों ही शान्ति प्रयत्नों का स्मरण करते हैं। उनके न रहने से एक घार राज नीति का विशाल म्तम्भ टूट गया तो दूसरी ओर जन जन का हृदय भवन सूना हो गया । जब प्रेमी ही न रहा तो प्रिय के दिल को कहाँ महलन प्राप्त हो । विश्व ने एक बारगी जिस वैधव्य का अनुभव किया है, वह झूठा नहीं है । विभिन्न प्रवृत्तियों, रंग-रूप और धर्मो के राष्ट्रों का प्रेम एक नेहरू में समाहित हो मका, यह भारत के लिए गौरव का विषय है । उनमें वह समन्वयात्मक तत्त्व था, जिसकी अाधार शिला पर अनेकान्त का चिन्तन चला था और अटत की तह में भी जो सदैव विद्यमान रहता पाया है। ऐसे महामानव के चरणों में 'अनेकान्त'. परिवार के सदस्य अपनी भाव भीनी श्रद्धांजलि समर्पित करते हैं । वह सही तभी होगी जब उनके बनाये पथ पर हमारे कदम अन्तिम सांस तक चलते रहेंगे।
-अनेकान्त परिवार
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