________________
साहित्य-समीक्षा
अभिनव प्राकृत व्याकरण,
श्रीमद् यशोविजय जी महाराज का जन्म गुजरात के लेखक:-डा. नेमिचन्द्र शास्त्री, पारा, प्रकाशक, कनोडा गांव में प्राज से ३५० वर्ष पूर्व हुआ था। यह तारा पब्लिकेशन्स, वाराणसी, सन् १९६३ ई०, पृ. ५३३ स्थान प्राज भी महेराणा से पाटण जाने वाली रेलवे लाइन मुख्य १५ रु.।
पर स्थित, दूसरे स्टेशन धीयोज से, पश्चिम में चार मील ___इसके पूर्व और भी अनेक प्राकृत भ्याकरण बन चुके दूर रूपेण नदी के किनारे पर बसा हुअा है। अब तो उसमें हैं। किन्तु यहां 'अभिनव' शब्द कतिपय नबीन विशेषताओं कनौडिया ब्राह्मण ही अधिक रहते हैं, किसी समय बनियां की भोर इशारा करता है। उनमें सबसे पहली विशेषता भाषा भी बड़ी संख्या में रहते थे। वैज्ञानिक दृष्टि का अपनायाजाना है। व्याकरण और उसके
यशोविजय जी प्रारम्भ से ही प्रतिभाशाली थे। उन्होंने शब्दों की ऐतिहासिक व्युत्पत्ति भाषा विज्ञान है । वह व्या-पाठ वर्षकी उम्र में दीक्षा ले ली। पूज्य गुरु नयविजय करण का व्याकरण कहलाता है। डा. नेमिचन्द्र ने उसका
जी के पास शिक्षा-दीक्षा हुई । उच्च अध्ययन के लिए बनारस भी अच्छा अध्ययन किया है । दूसरी विशेषता है सभी
गये। वहां से तीन वर्ष उपरान्त ही लौट कर उन्होंने श्रागरे प्राकृत भाषाओं का तुलनात्मक विवेचन । ऐसा प्रतीत होता में किसी जैन विद्वान के पास कर्कश तर्क प्रन्थों का पारायण है कि लेखक ने अनेक प्राकृत व्याकरण पढ़े हैं, समझे हैं, किया। गजरात में उनका विशिष्ट सम्मान था। उन्होंने तभी वे उनकी तुलना सफलता पूर्वक कर सके हैं। उन्होंने
हान ३०० प्रन्धों का निर्माण किया। वे एक महान विद्वान थे। अपने इस अध्ययन को आसान और वैज्ञानिक शैली में
प्रस्तुत पुस्तक में उनके जीवन और कृतित्व का परिचय अभिव्यक्त किया है। यहां उन उलझनों के दर्शन नहीं है। लेखक ने गहभक्ति से अनुप्राणित होकर इसका निर्माण होते. जो प्रायः व्याकरण अन्धों में प्राप्त होती है । किया है। यशोविजय जी अपने युग के अप्रतिम विद्वान थे,
तीसरी विशेषता है: अन्त में १६ परिशिष्टों का यह निर्विवाद है। कतिपय स्थल ऐसे रह गये हैं, जहां निबद्ध किया जाना । इनमें भाषा और विषय-क्रम से शब्द- लेखक न स्पष्ट है, न प्रामाणिक । मागरे में किस विद्वान सूचिशं प्रस्तुत की गई हैं। उनके, बिना अन्य व्यर्थ ही था। के पास यशोविजय जी ने तर्क पन्ध पदे भाज भी प्रवियह सब कुछ परिश्रम साध्य तो है ही, लेखक की मंजी हुई दिव है। दिगम्बर मान्यताओं का गढन करते २ वे कड़वे राष्ट से भी अपेक्षित है। ग्रन्थ प्राचीन और नवीनके ताने- क्यों हो उठे समझ में नहीं आया । इसी प्रकार महात्मा बाने से बुना गया है। इसमें ग्यारह अध्याय है। 'अन्तिम अानन्दधन से उनकी मुलाकात का विशद विवेचन नहीं है। दो' महत्वपूर्ण हैं। उनमें अन्य प्राकृत भाषानों और अप
यह भी समझ में नहीं प्रापाता कि एक ओर तो उन्होंने भ्रंश का व्याकरण निबद है। ऐतिहासिक विवेचन उसकी 'अध्यातमियां लोगों का मण्डन किया और दूसरी ओर अपनी विशेषता है।
महात्मा श्रानन्दधन से प्रभावित होकर प्रष्टपदा' और ___ ग्रन्थ की बाह्य साज-सज्जा सन्तोषप्रद है, किन्तु शरद्धा- 'चावीशी' का निर्माण किया, मेरी दृष्टि में उस समय प्रानन्दनुशासन जैसी नहीं। हमें विश्वास है कि प्राकृत भाषा के
धन से बड़ा कोई 'अध्यातमियां' नहीं था । सदैव प्रारमानुजिज्ञासुमों के लिए यह प्रन्य पठनीय होगा।
भूति में लीन रहने वाले उस महात्मा से यशोविजय जैसे अमर यशोविजय जी
तर्क प्रवण विद्वान का अन्तस्तल हिल उठा था । लेखक:--रंजन पामार, प्रस्तावना-लेखक:- सुखलाल मैं पाशा करता हूँ कि श्रीमद् यशोविजय जी पर एक जी संघबी, प्रकाशक : राजविराज प्रकाशन, ३११ रविवार महत्वपूर्ण शोध ग्रन्थ प्रकाशित होगा। उन पर लिखे गये फे, पना २, सन् १९५६ ई०, पृ.५६, मूल्य ५ न. पै. अभिनन्दन ग्रन्थ से भी उत्तम और श्रेष्ठ।