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अनेकान्त
करता। उनके स्वर्गवास से अापके एक सच्चे सहयोगी का
बिछोह हुआ है । प्राशा है पार सन्तोष धारण करेंगे। मंत्री (बा० प्रेमचन्दजी) के नाम पत्र "
में और मेरा परिवार उनकी आत्मा की सद्गति की आपके पत्र से बाबू जयभगवानजी के निधन का समा- कामना करते हैं। चार जानकर बहुत दुःख हुना, विश्वास नहीं हो रहा है कि वे
प्रेम सागर जैन चले गये.......... ।
दि जैन कालेज बड़ौत (मेरठ) वकील साहब जैन समाज के गौरव थे और वीर-सेवा मन्दिरके तो वे प्रारंभ से ही मंत्री रहे । साहित्यिक अनुसंधान में ये बहुत दक्ष थे । वीर सेवा मन्दिर में उनके स्थान की पूर्ति होना कठिन है। मुझे तो उनके वियोग से बहुत ही व्यथा
श्राकास्मक निधन हुई है। मेरा सदा वे बहुत सादर करते थे । उनकी श्री बाबू जयभगवानजी एडवोकेट पानीपत का ५ प्रारमीयता और स्नेह कभी भुलाये नहीं जा सकते । मैं तो अप्रैल को आकस्मिक निधन जानकर चित्त को बड़ा प्राधात उनसे निवेदन करने वाला था कि अब आप वकालत से पहना। आप उस दिन वीरसेवामन्दिर में आने वाले थे। retier होकर वीर सेवा मन्दिर में रहे और अपनी सेवा मिलन के स्थान पर वियोग का दुःसह समाचार पाकर किसे समाज को प्रदान करें। किन्तु मेरे विचार कुछ भी काम न कष्ट नहीं होता। श्राप एक अच्छे अनुसंधानप्रिय योग्य पाये । बहुत दुःख है।
विद्वान थे, सुलेखक थे और साथ ही वक भी थे। समाजके
-छोटेलाल जैन उत्थान-कार्यो में बराबर भाग लेते थे। बीर-सेवामन्दिरडा० प्रेमसागर का अध्यक्ष के
से श्राप को बडा प्रेम था। सन् १९४२ के शुरू में मेरे
अनुरोध पर आपने वकालत छोड़कर उसे अपनी सेवाएं नाम पत्र
अर्पित की थीं । दुर्भाग्य से अपनी कुछ परिस्थितियों के वश
ये कुछ महीने बाद फिर से वकालत करने के लिये बाध्य मैंने बाबू जयभगवानजी को एक बार बडौत और
हुए और अन्त को वकालत करते हुए ही उनका निधन तीन बार दिल्ली में देखा था। अभी अनेकान्त के सम्बन्ध
हा है । सन् १९५१ में मेरे द्वारा वीरसेवामन्दिर ट्रस्ट की में बात चीत होनी थी, न हो सकी। देव-दुर्विपाक से ही
स्थापना हो जाने पर ट्रस्ट ने उन्हें अपना उपमंत्री चुना था, ऐसा हुआ।
बाद को वे मंत्री चुने गए और सोसाइटी की रजिस्टरी के मैंने बाबू जयभगवान जी को एक मही इन्सान के रूप
अवसर पर सोसाइटी के भी मंत्री नियुक्त हुए और अन्त में देखा । उन्होंने जैनधर्म की अहिंसा को समझा ही नहीं
तक उसके मंत्री बने रहे । इस तरह वीर-सेवा-मन्दिर के अपने जीवन में उतारा भी था। वे विद्वान थे, प्रतिभाशाली
साथ आपका बहुत वर्षों से गहग सम्बन्ध रहा है। आपके थे और अत्यधिक उदार थे।
इस वियोग से जहां वीर-संवा-मन्दिर को भारी क्षति पहुंची वीर सेवा मंदिर के विकास में उनके योगदान से सभी वहाँ समाज की भी काफी हानि हुई है, जिसकी सहज परिचित हैं । सतत अस्वस्थ रहने के कारण अनेक कार्य ऐसे पूर्ति सभव नहीं। हार्दिक भावना है कि सद्गत प्रात्मा को थे जिन्हें दिल होते हुए भी वे न कर सके, इस विषय में परलोक में सुख शान्ति की प्राप्ति होवे और कुटुम्बीजनों मुझ से दो बार चर्चा की। उनकी गहरी वेदना और विवशता को धैर्य मिले। मैं समझाता था उनके प्राकस्मिक निधन से वीर सेवा मंदिर
-जुगलकिशोर मुख्तार को जो क्षति पहुंची है, उसकी कल्पना नहीं की जा सकती। सन्निकट भविष्य में पूरी हो सकेगी मैं ऐसी प्राशा नहीं