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नन्दि संघ बलात्कारगण पटटावली
अनावहीन और राघोचेतन के समय घटित हुई है। फीरोज इनके तीम प्रधान शिष्यों से तीन शाखाएँ प्रसूत हुई जयपुर साह तुगलक के समय नहीं। लेखक ने उसे भूल से फीरोज शाखा, ईडर शाखा और सूरत शास्त्रा। साह तुगलक के साथ जोड़ दी है। क्योकि राघोचेतन मला
शुभकीर्ति-पदममंदि के पटायर भी अपने उहान क समय हुए है। व मत्र तत्रचादि प्ररि नास्तिक समय के अच्छे विद्वान थे । इनका समम १५ वीं शताब्दी भी. उन्हें धमे पर कोई प्रास्था नहीं था, अजादान भी का उत्तरार्ध है। पापकी क्या कह रचना यामम्वेउन्हा क विचारों से सहमत था । उस समय माहवसन से षण से सम्बन्ध रखता है, अभी हमें इनकी कोई रचना इनका बाद हुश्रा था ऐसा उल्लेख मिलता है भ. प्रभाचंद्र ने तो मुहम्मद शाह जिसे महमदसाह भी कहते हैं उसके राज्य में वाद की घटना घटित हुई थी और प्रभाचंद्र ने उम
जिनचंद्र-यह भट्टारक शुभचंद्र के पटवर थे। इनके पर विजय पाई थी । धनपाल के बाहबली चरित में भी उक
पटट पर प्रतिष्ठित होने का समय सं० १०. पाया जाता घटना का उल्लेख निम्न वाक्यों में 'महमंद साहि मगुरंजि
है। टावली के अनुसार यह उस पर १२ वर्ष तक अब. यउ, विजहि वाहय मणु भंजियउ' दिया है प्रभाचंद्र अला
स्थित रहे। यह प्राकृत मंस्कृत के विद्वान थे और अत्यंत
प्रभावशाली थे । मापके द्वारा प्रतिष्टित म. १९४८ की उद्दीन खिलजी के समय नहीं हुए। अतएव प्रभाचंद्र का रत्नकीर्ति के पट्ट पर प्रतिष्ठित होने का समय मं० १४०८
तीर्थकर मूर्तियां भारतीय जैन मन्दिरों में पाई जाती है।
ऐसा कोई भी प्रांत नहीं, जहां उनके द्वारा प्रतिष्ठित मूर्तियां के बाद होना चाहिए भ. प्रभाचंद्र फीरोज माह तुगलक के
न हों। इनके द्वारा प्रतिष्ठिन एक मूर्ति सं० १९.७की भी आग्रह से अन्तःपुर में धर्मापदेशार्थ पधारे थे। तब शरीर को
उपलब्ध है । प्रापके अनेक विद्वान् शिष्य थे। उनमें पंडित वस्त्र से अच्छादित करना पड़ा था। बाद में उसे अलग
मेधावी और कवि दामोदर प्रादि हैं। इनकी रचनाएँ भी कर देने पर भट्टारकों में वस्त्र की परम्परा प्रचलित हो गई
उपलब्ध हैं। जिनचंद्र की इस समय दो कृतियां उपलब्ध थी । इस घटना क्रम पर विचार करने से पाटावली का समय
हैं, सिद्वान्तमारादि संग्रह, चतुर्विशस्ति जिनस्तवन । इनके भी मंदिग्ध प्रतीत होता है। इस पर फिर कभी विशेष
समय में जैन मंस्कृति का.अच्छा कार्य हुमा है, इनके शिष्यों विचार किया जायगा । अनेक टाका प्रथ भा इन्हीं प्रभाचंद
ने भी उसे पल्लवित किया । उक्त शिष्यों में मेधावी प्रधान की रचना है।
थं और संस्कृत के अच्छे विद्वान थे। उनकी सं० ११८ से पानन्दि-यह भ. प्रभाचंद्र के पटधर थे, पहले १५४१ तक की अनेक पदयामक प्रशस्तियां देखी जाती मंडलाचा । बाद में गजरात में भटयारक पद पर प्रति- हैं, जो हिसार में लिखी गई हैं।म १५४१ में धर्मसंग्रह ष्ठित हुए थे। यह उस समय के योग्य विद्वान और श्रावकाचार की रचना भी इन्होंने नागौर में पूर्ण की थी प्रभावशाली थे । इनके अनेक शिष्य थे। इनसे मूलमंघ इस तरह जिनचंद्र भट्टारक की महत्ता का सहज ही बलात्कार गण की तीन परम्परा प्रचलित हई हैं। यह प्राभास हो जाता है। मंत्र तंत्र में निपुण और संस्कृत के अच्छे विद्वान थे । इन प्रभाचंद्र-प्रस्तुत प्रभाचंद्र अपने समय के एक बहुकी बनाई हुई अनेक रचनाएँ उपलब्ध हैं। पद्मनंदि श्रत विद्वान थे। अपनी तर्कणा से इन्होंने धादियों को श्रावकाचार (श्रावकाचार सारोदार) वर्तमान चरित, कथाएँ विजित किया था। इनका पट्टाभिषेक सं० १९७१ में वीतरागस्तोत्र, शान्ति जिनस्तोत्र, रावण पार्श्वनाथस्तोत्र, फाल्गुण कृष्णा २ को सम्मेद शिखर पर सुवर्ण कलशों से जीरावली पार्श्वनाथ स्तवन और भावना पद्धति । इनके और हुचा था । इन्होंने सं० १९७३ में फा.कृ. ३ दशलक्षणइनके शिष्यों के द्वारा अनेक प्रतिष्ठित मूर्तियां यत्र-तत्र यत्र की स्थापना की थी। इनके मंडलाचार्य धर्मचंद का भी मिलती है । गिरनार पर्वत पर इन्होंने सरस्वति को वाचालित अनेक प्रशस्तियों में उल्लेख मिलता है। एक पट्टावनी में किया था, और प्राद्य दिगम्बर कहलाया था। इनकी शिष्य में भी धर्मचंद्र का नामोल्लेख हुमा है। उसके बाद चंद्रपरम्परा में भ. सकलकीर्ति ने खूब सा हस्यिक कार्य किया। कीर्ति का ।