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अनेकान्त
'चंद्रकीर्ति—यह भ. प्रभाचंद्र के पट्टधर थे। इनका ____ ततः पट्टद्वयी जाता प्राच्युदीच्युपलक्षणा । पटटाभिषेक भी सम्भेदशिखर पर किया गया था। इनके द्वारा तेषां यतीश्वराणां म्युर्नामानीमानि तत्त्वतः ॥७ प्रतिष्ठित अनेक मूर्तियां राजस्थान में मिलती है । पट्टावली यशःकीर्तियशोनन्दी देवनन्दी महामतिः । में पट पर प्रासीन होने का समय सं०१६२२ वैशाख सुदी पूज्यपादापराख्येयो गुणनन्दी गुणाकरः ॥ २ दिया हुआ है।
वज्रनन्दी वज्रवृत्तिम्नार्किकाणां महेश्वरः । देवन्द्रकीर्ति-यह भ. चंद्रकीर्ति के पट्टधर थे। इनके
कुमारनन्दी लोकेन्दुः प्रभाचन्द्रो वचोनिधिः ॥ पट्ट पर बैठने का समय मं० १६२२ फालगुन वदी १५ नेमिचन्द्रो भानुनन्दी सिंहनन्दी जटाधरः । दिया है । यह चाटसू में पट्टम्थ हुए थे।
वसुनन्दी वीरनन्दी रननन्दी रतीशभित ॥१० नरेन्द्रकीर्ति-यह भ. देवेन्द्रकीनि के पटधर थे।। माणिक्यनन्दी मेघेन्दुः शान्तिकीतिर्महायशाः । देवेंद्रीति नामक अनेक विद्वान हो गए हैं । पट्टावली में मेरूकीर्तिमहाकीति विष्णुनन्दी विदांवरः ॥११ नरेंद्रीति से पहले ललितकार्तिका नामोल्लेख और मिलता श्रीभूषणः शील चन्द्रः श्रीनन्दी देशभुषणः । है । इसमें उसका उल्लेख नहीं है। यह खंडेलवाल थे और अनन्तकीर्तिर्धर्मादिनन्दी नन्दितशामनः ॥१२ गांव योगाणा था । यह मांगानेर में पट्टस्थ हुए थे। श्रामेर विद्यानन्दी गमचन्द्रो रामकीतिरनिंद्यवाक । के मंवत १७१६ के शिलालेख में इन्हें मूलसंध बलात्कार- अभयेन्दुर्नराचन्द्रो नागचन्द्रः स्थिरव्रतः ॥१३ गण का भट्टारक सूचित किया है। इन्हीं की आम्नाय में नयनन्दी हरिश्चन्द्रो महीचन्द्रो मलोज्झितः । जयसिंह राजा के महामंत्री मोहनदास ने अंयावती में विमल माघवेन्दुर्लक्ष्मीचन्द्रो गणकीर्तिगणाश्रयः ॥१. नाथ चैत्यालय की प्रतिष्ठा नरेन्द्रकीर्ति के उपदेश से कराई गण चन्द्रो वामवेन्दुलोकचन्द्रः मुतत्ववित् । थी 1 । प्रस्तुत पट्टावली इन्हीं के द्वारा संकलित की गई विद्यः श्रुतकीर्याख्यो वैयाकरणभाम्करः ॥१५
भावचन्द्रो महाचन्द्रो माघचन्द्रः क्रियागणी । श्रीमानशेषनरनायकवान्दितांघ्रिः ।
ग्रहानन्दी शिवनन्दी विश्वचन्द्रम्तपोधनः ॥१६
सैद्धान्तिको हरिनन्दी भावनन्दी मुनीश्वरः । श्रीगुप्तगुप्त इति विश्रु तनामधेयः ।।
सुरकीर्तिः विद्याचन्द्रः सूरचंद्रः श्रियांनिधिः ॥१७ यो भद्रबाहुमुनिपुङ्गवपादपद्म, सूर्यः म वो दिशतु निर्मल संघवृद्धिम् ।।"
माघनन्दी ज्ञाननन्दी गङ्गकीर्ति महातपाः । श्रीमूलगंधेऽजनिनन्दिसङ्घस्तस्मिन् बलात्कारगणोऽतिरम्पः।। बिहकीर्ति हेमकीर्तिश्चारूनन्दी मनोजधीः ।।१८ तनावभी पूर्वपदांशवेदी श्रामाघनन्दी नरदेववन्ध: ।।२
नेमिनन्दी नाभिकीतिः नरेन्द्रादि यशाः परम ।
श्रीचन्द्रः पद्मकीनिश्च वर्धमान मुनीश्वरः ॥१५ पटटे तदीये मुनिमान्यवृनौ जिनादिचन्द्रःस्समभृदतन्द्रः । सतोऽभवत्पञ्चसुनामधामा, श्रीपद्मनन्दी मुनि नक्रवर्ती ॥३ अकलंक चन्द्रगुरू-ललितकीर्तिरूत्तमः । प्राचार्यः कुन्दकुन्दाग्यो वक्रग्रीवो महामतिः । ब्रीविद्यः केशवाञ्चन्द्रश्चारूकीर्तिमुधर्मणः ॥२. एलाचार्यों गृच्छपिच्छः पद्मनन्दीति सन्नुतः ॥४
मैद्धांतिकोऽभयकीर्ति बनवापी महातपाः । तत्त्वार्थसूत्रकर्तृवात् प्रकटीकृतसन्मतः ।।
वमनकीर्ति व्याघ्रादि संचितः शील मागरः ॥२१ उमास्वातिपदाचार्यो मिथ्यात्वतिमिरांशुमान् ।।५
तस्य श्रीवनवासिनस्त्रिभुवनम्नच्यातकीर्तेरभूतलोहाचार्यस्ततो जातो जातरूपधरो ऽ मरैः ।
च्छिप्योनेकगुणालयः शम-यमध्यानापगा सागरः । सेवनीयः समस्तार्थविवोधनविशारदः ।।
वादीन्दुः परवादिवारण गणप्रागलभ्यविद्रावणे ।
सिंहः श्रीमति मंडति विदितस्त्रविद्यविद्यास्पदम् ॥२२ 1 Seu Jain Antiquary Vol.8-Kıran 2 P. 95-97
१ नागकीर्ति महोत्तमः-दिल्ली पंचायती मन्दिर प्रतिपाठः
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