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नन्दि संघ बलात्कारगण पावली ने चर्यादि के समय चटाई प्रादि से शरीर ढके और बाद में इससे पावली वाली परम्परा भी ठीक जान पड़ती है। उसे छोड़ दे ऐसा उपदेश दिया था। जैसा कि उनके निम्न शुभकीर्ति-यह विशालकीर्ति के पट्टधर थे। इनकी वाक्यों से प्रकट है- करपवादवेषः कलौ किं म्लेच्छादयो बुद्धि पंचाचारकेपालन से पवित्र थी, एकान्तर भादि उप्रतपों नग्नं दृष्टया उपद्रवं यतीनां कुवंति तेन मंडपदुर्गे वसंत- के करने वाले तथा सन्मार्ग के विधि विधान में ब्रह्मा के तुल्य कातिना स्वामिना चर्यादिवेलायां तट्टीसारादिकेन शरीर- थे। यह मुनियों में श्रेष्ठ थे और शुभ प्रदाता थे। मारछादय चर्यादिकं कृत्वा पुनस्त न्मुचयतीत्युपदेशः कृतः शुभकीर्ति नामके अनेक विद्वान हो गये हैं। उनमें संयमिनां इत्यपवादवेषः कृतः । षट्मा, टी. १.२१ ।' श्रुत- से यह शुभकीर्ति कौन थे यह जानना कठिन है। अपभ्रंश सागर सूरि द्वारा उल्लिखित वमंतकीर्ति वही ज्ञात होते शांतिनाथचरित के कर्ता भी एक शुभकीति हैं यह ग्रंथ नागौर हैं जिनका पटावली में उल्लेख किया गया है। दूसरे में मालित।जो
का प्रतिलित किया अन्य वमंतकीर्ति का उल्लेख देखने में नहीं पाया। हुआ है । प्रथ सामने न होने से इनकी गुरूपरम्परा ज्ञात
प्रख्यातकीनि-उक्त वसंतकीर्ति के पट्टधर थे। यह नहीं हो सकी। एक शुभकीर्ति कुदकुद वंश में प्रभावभी बनवामी थे और त्रिभुवन में ख्यात ये। अनेक गुणों शाली रामचन्द्र के शिष्य थे जो बड़े तपस्वी थे इस समय के श्रालय थे, शम-यम और ध्यान के सागर थे । वादियों
उनके पट्ट को अपनी विद्या के प्रभाव से विशालकीर्ति शोभित में इन्द्र के तुल्य और परवादि रूप हाथियों के मद को चूर कर रहे हैं। जिनके अनेक शिष्य हैं जो एकान्तवादियों को करने के लिए सिंह के समान थे विद्यविद्या के प्रास्पद
पराजित करने वाले हैं।इनके शिष्य विजयसिंह है जिनके थे और प्रसिद्ध मंडपदुर्ग में निवास करते थे। पटा- कण्ठ में जिन गुणों की मणिमाला सदैव शोभा देती है। वली में इनकी श्रायु २८ वर्ष ३ मास और २३ दिन
धर्मचंद्र-यह शुभकीर्ति के पट्टधर थे। अच्छे बतलाई गई है पर वे पट्ट पर २ वर्ष ३ मास २३ दिन ही सिद्धान्त वेत्ता, और संयमरूप ममुद्र को वृद्धिंगत करने रहे थे, ११ वर्ष गृहस्थ अवस्था में और १२ वर्ष दीक्षावस्था
में चंद्रमा के नुख्य थे । इन्होंने अपने प्रख्यात माहात्म्य से में व्यतीत हुए थे।
अपना जन्म कृतार्थ किया था । और हम्मीर भूपाल के द्वारा विशालकीर्ति-यह प्रख्यात काति के पट्टधर थे । संमाननीय थे। यह उत्कृष्ट व्रतों की मूर्ति और तपोमहात्मा थे।
पट्टावली में उल्लिखित हम्मीर भूपाल कौन है, यह अजमेर पटावली और नागौर पट्टावली में प्रख्यात- यात विचारणीय है । जिन्हें धर्मचंद्र का सम्मानकर्ता बतलाया कानि के बाद शांतिकोनि का नामोल्लेख किया गया है। गया है। यदि पट्टावली गत समय ठीक है, तब तो रणऔर शांतकीर्ति के पश्चात् धर्मकीर्ति का नाम दिया है। -
तपट्टेऽजनि विख्यातः पंचाचारपवित्रधीः । किन्तु अजमेर और सूरत की पटावलियों में शांतिकीर्ति
शुभकीर्तिमुनिश्रेष्ठः शुभकीर्तिः शुभप्रदः ॥१६ का कोई उल्लेख नहीं है, शुभकीर्ति के बाद धर्मचंद्र का
-सुदर्शनचरित नाम दिया गया है।
२ श्री कुदकुदस्य बभूव वंशे श्री रामचंद्रः प्रथितप्रभावः । भट्टारक विद्यानन्द ने भी सुदर्शनचरित में।
शिष्यस्तदीयः शुभकीर्तिनामा तपोगनावक्षसि हारभूतः ॥ विशालकीर्ति का उश्लेख किया है और उन्हें कुन्दकुन्द की
प्रद्योतने मंप्रति तम्यपट्ट विदयाप्रभावेण विशालकीतिः । संतान परम्परा में शुद्ध ज्ञान के धारक, योगत्रय में निष्यात
शिष्यैरनेक रुपमेव्यमान एकान्तवादादिविनाशवज्रम् ।। और मुनियों में प्रशस्ततम बतलाया है जैसा कि उसके निम्न
जयति विजयसिंहः श्रीविशालम्य शिष्यो, पद्य से प्रकट है
जिनगुण-मणिमाला यस्य कंठे सदैव । योगत्रयेषु निष्णात: विशालकीर्ति शुद्ध धीः । अमितमहिमराशेधर्मनाथम्य काम्यं, श्रीकुदकुदसंताने बभूव मुनिसत्तमः ।।१८।। निजसुकृतनिमित्त तेन तस्मै वितीर्णम् ।। और दूसरे पक्ष में शुभकीर्ति का उल्लेख किया है,
-धर्मशर्माभ्युदय लिपिप्रशस्ति