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अनेकान्त
प्रतीत होती है। हो सकता है कि वह उन्हीं की कृनि हो व पुनंदी २० वीरनंदी २१ रत्ननंदी २२ माणिक्यनंदी २३ अथवा अन्य किसी माघनंदी की। यह बात भी विचारणाय मेवचंद्र २४ शांतिकीर्ति २५ मेरूकीर्ति २६ महाकीर्ति २७
विश्वनंदी २८ श्री भूषण २६ शीलचंद्र ३० देशभूषण ३१ इसी पहावली में भद्रबाह और उनके शिष्य 'गुप्ति अनन्तकीर्ति ३२ धर्मनंदी ३३ विद्यानंदी ३४ रामचंद्र ३५ का उल्लेख किया गया
की डावली में रामकीर्ति ३६ अभयचंद्र ३७ नरचंद्र ३८ नागचद्र ३६ भवाह के उन शिष्य गुप्तिगुप्त के दो नाम अर्हदली नयनंदी ४० हरिचश्चंद्र ४१ महीचंद्र ४२ माधवचंद्र ४३
और विशाखाचार्य दिये हैं। किन्तु पट्ट का प्ररम्भ करते समय लक्ष्मीचंद्र ४४ गुणकीर्ति ४५ गुणचंद्र ४६ वाम्यवचंद्र ४७ इनका नाम नहीं दिया, किन्तु जिनचन्द का नाम दिया है। लोकचंद ४८ श्रुतकीर्ति ४६ भानुचंद्र ५० महाचंद्र ५१ प्राकुत पट्टावली में अर्हद् वली का समय वि० सं० १५ माघचंद्र ५२ ब्रह्मनंदी ५३ शिवनंदी ५४ विश्वचंद्र ५५ बतलाया है किन्तु संस्कृत पट्टावली में जिनचन्द का समय हरिनंदी ५६ भावनंदी ५७ सुरकीर्ति ५८ विद्याचंद्र ५६ वि० सं० २६ दिया है। पंडितप्रवर प्राशाधर जी ने सुरचंद्र ६० माघनदी । ज्ञाननंदी ६२ गंगनंदी ६३ महर्षि पर्युपासनमें कुन्दकुन्द के पूर्व जिनचन्द्र का नामो सिंह कीर्ति ६४ नरेन्द्रकीर्ति हेमकीर्ति ६५ चारनंदी ६६
लम्ब किया है । श्र नसागर ने भी उन्ही का अनुकरण किया नेमिनंदी ६७ नाभिकीति ६८ नरेन्द्र कीर्ति ६६ श्रीचंद्र ७० है । परन्तु इस सम्बंध में समीचीन प्रमाणों की आवश्यकता पद्मकीति ७१ वर्धमान ७२ अकलंकचंद्र ७३ ललितकीर्ति ७४ हैं । और गुरुपरम्परा का ज्ञान भी आवश्यक है। केशवचंद्र ७५ चारुकीति ७६ अभयाति ७७ वसतकीर्ति ७८ पटावली में जिनचंद्र के पश्चात् पद्मनंदी का नामो
प्रख्याताति ६ विशालकीर्ति ८० शुभकीर्ति ८१ धर्मचंद ल्लेख किया है उनके पांचनामों में एक नाम कुन्दकुन्द भी
८२ रत्नकीर्ति ३ विख्यातकीति ८४ प्रभाचंद्र ८५ दिया है। परंतु पंचनामों में से वकग्रीव, एलाचार्य, और
पदमनंदी ८६ शुभचंद्र ८७ जिनचंद्र EE प्रभाचंद्र ८६ गृध्रपिच्छ ये तीन नाम तो भिन्न भिन्न प्राचार्यो के हैं कुन्द
चंद्रकीति १० दबद्रकीर्ति ६१ और नरेंद्रकीति । कुन्द और उनके समयादि के सम्बंध में किसी अन्य लेख में
अजमेर पदटावली में देवनंदी और पूज्यपाद के दो विचार किया जायगा । प्राचार्य कुन्दकुन्द अपने समय के
पट अलग अलग दिग्वाए गए हैं। उनमें देवनंदी को प्राध्यात्मिक विद्वान थे। श्रापकी कृतियां बहुमूल्य और
पोरवाल, और पूज्यपाद को पद्मावति पोरवाल बतलाया वस्तु तत्व की प्रतिपादक है । इन का समय अभी सुनिश्चित ग
___ गया है जो विचरणीय है। नहीं हो सका । पानंदी नाम के अनेक विद्वान हुए है। इन प्राचार्या, विद्वानों या भट्टारकों में से कुछ विद्वान कुन्दकुन्द का प्रथम नाम पदमनदा था यह मान्यता कितनी प्राचार्यों का संक्षिप्त परिचय यहां दिया जा रहा है । देवपुरानी है। दशौं शताब्दी से पूर्व क शिलालेखों और ग्रंथों में नंदी, बज्रनंदी, प्रभाचंद्र, भाणिक्यनंदी, वीरनंदी मेघवंद्र पद्मनंदिका उलेख किस रूप में हुआ, यह विचारणीय है। विद्यानंदी अादि विद्वानों का तो परिचय ज्ञात है। यहां
इसके बाद तत्वार्थसूत्र के कर्ता उमास्वाति का नाम ७८३ नम्बर से कुछ विचार किया जाता है, अवशेष का दिया हुआ है। फिर लोहाचार्य हुए, जो यथाजात रूपधारी फिर कभी अवकाश मिलने पर विचार हो सकेगा।
और देवों के द्वारा सेवनीय तथा समस्तार्थ क बोध करने में वसंत कीर्ति-यह अभयकीर्ति के पट्टधर थे, अभयविशारद थे। लोहाचार्य के बाद उक्र नंदिसंध दो पट्टों में कीति स्वयं वनवामी तपस्वी थे, वनों में व्याघ्रों और सों विभक हो गया। एक प्राच्यपट्ट (पूर्वीपट्ट) और दूसरा द्वारा सेवित थे। शील के सागर थे । पट्टावली में इन उदीची उत्तर पट्ट । उन यतीश्वरों के नाम इस प्रकार हैं- दोनों का समय सं० १२६४ दिया गया है। इससे यह यश कीर्ति यशोनंदी १. देवनंदी (पूज्यपाद) ११ गुण थोड़े समय पट्ट पर रहे हैं । इनके सम्बंध में अपवाद मार्ग नंदी १२ वज्रनंदी १३ कुमारनंदी १४ लोकचंद्र १५ प्रभा- का उल्लेख करते हुए श्रु तसागरसूरि ने षटू प्राभृत की चंद्र १६ नेमिचंद्र १७ भानुनंदी १८ सिंहनंदी १६ टीका में लिखा है कि मंडपदुर्ग (मांडलगढ़) में बसंतकीर्ति