Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे पदे अपदा' जघन्यपदे वनस्पतिकायिकाः सामान्यतोऽपदाः, 'उकोसपदे य अपदा' उत्कृष्टपदे चापदाः वनस्पतिकायेषु जघन्यपदस्योत्कृष्टपदस्य च संभावना नास्ति यतो जघन्यपदमुत्कृष्टपदं च नियतसंख्यारूपं भवति एतादृशनियतसंख्यारूपं जघन्यपदमुत्कृष्टपदं च नारकादिषु कालान्तरेऽपि संभवति परन्तु वनस्पतिकायविषये जघन्यपदमुत्कृष्टपदं च कालान्तरेऽपि न संभवति यतो वनस्पतिजीवाः परम्परया मोक्षे गच्छन्ति तथापि ते जीवाः अनन्तराशिरूपा भवन्तोऽपि तेषु राशिषु अनियतरूपत्वं भवति व्यवहारनयेन इत्यतः स राशिरनियतस्वरूपो भवति । अयमाशयः जघन्यपदमुत्कृष्टपदं च एतदुभयमपि नियतसंख्यारूपम् एतच्च नियतसंख्या वत्सु नारकादिष्वेव संभवति न तु अनियत संख्यावत्सु वनस्पतिकायेषु भवति है-'जहन्न' हे गौतम ! वनस्पतिकायिक जीव जघन्यपद में सामान्यतः अपद हैं अर्थात् वनस्पतिकायिक में जघन्य पद की संभावना नहीं है इसी प्रकार उकृष्टपद की भी संभावना नहीं है। क्योंकि जघन्यपद और उत्कृष्ट पद नियतसंख्यारूप होता है। ऐसा संख्यारूप जघन्य पद और उत्कृष्ट पद कालान्तर में भी नारकादिकों में संभवित होता है परन्तु वनस्पतिकायिकों के विषय में जघन्य पद और उत्कृष्ट पद कालान्तर में भी संभवित नहीं होता है । क्योंकि वनस्पतिकायिक जीव परम्परा सम्बन्ध से मोक्ष में भी जाते हैं। फिर भी ये जीव अनन्त राशिरूप बने रहते हैं। इसी कारण व्यवहाररूप से इनकी राशियों में अनियतरूपता रहती है। इसका आशय ऐसा है-जघन्य पद और उकृष्ट पद ये दोनों पद नियम से संख्यारूप होते हैं। और इसीसे ये दोनों पद नियत संख्यावाले नारकादिकों में ही संभवते हैं। अनियत संख्या
"जहन" है गीतम ! वनस्पति यि ७३ धन्यपहथी सामान्यत: અપદ છે. અર્થાત વનસ્પતિ કાયિકમાં જઘન્યપદ સંભવતું નથી. તે જ રીતે ઉત્કૃષ્ટ પદ નિયત સંખ્યારૂપ હોય છે. એવું નિયત સંખ્યારૂપ જઘન્યપદ અને ઉત્કૃષ્ટપદ કાલા-તરમાં પણ નારકાદિકે સંભવે છે પરંતુ વનસ્પતિ કાયિકોના વિષયમાં જઘન્યપદ અને ઉત્કૃષ્ટપદ કાલાન્તરમાં પણ સંભવતું નથી કેમ કે વનસ્પતિકાયિક જીવ પરમ્પરા સંબંધથી મોક્ષમાં પણ જાય છે. તે પણ આ જીવ અનંત રાશિ રૂપ બની રહે છે એજ વ્યવહાર રૂપથી તેઓની રાશિમાં અનિયત રૂપ પાણુ રહે છે. કહેવાને આશય એ છે કે--જઘન્ય પદ્ધ અને ઉત્કૃષ્ટપદ એ બને પદ નિયત સંખ્યા રૂપ હોય છે. અને
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩