Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १६ उ० २ सू० २ जीवानां जराशोकादिनिरूपणम् ५७ सुघोषा घण्टा-शक्रस्य सुधोषा घटा ताडनाय हरिणैगमेषी नियुक्तः, ईशानस्य तु नन्दिघोषा घंटा तत्ताडनाय लघुपराक्रमो नियुक्तः, 'पालभो विमाणकारी' पालको देवो विमाननिर्मापकः शक्रस्य, ईशानस्य तु पुष्पको देवो विमाननिर्मापकः, 'पालगं विमाणं' पालकं विमानं शक्रस्य, ईशानस्य तु पुष्पकनामकं विमानम् , 'उत्तरिल्ले निजाणमग्गे' औत्तरीयो निर्माणमार्गः, निष्क्रमणार्थ मार्ग उत्तरस्यां दिशि शक्रस्य, ईशानस्य तु दक्षिणो निर्याणमार्गः । दाहिणपुरथिमिल्ले रहकरपयए' दक्षिणपौरस्त्ये आग्नेयकोणे रतिकरपर्वतः शक्रस्य, ईशानस्य तु नन्दीश्वरद्वीपे उत्तरपूर्व रतिकर पर्वतः, अवतरणाय कथितः ईशानकोणे रतिकरपर्वत ईशानस्य शक्रस्य तु आग्नेयकोणे विद्यते रतिकरपा इति, एवं रूपेणोभयो।लक्षण्यं वाच्यमिति । 'सेस तं चेव' शेषं तदेव, एतद् व्यतिरिक्तं सर्व वर्णन ईशानवदेव पराक्रम है। शक की सुघोष घटा है। और उसको बजाने के लिये हरिजोगमेषी नियुक्त है, ईशान की नन्दिघोषा घंटा है उसे बजाने के लिये लघुपराक्रम नियुक्त है। पालो विमाणकारी' शक्र का विमान निर्मा पक पालक देव है । ईशान का पुष्पक देव है। 'पालगं विमाणं शक्र का विमान पालक नामका है, ईशान का विमान पुष्पक नामका है। उत्त रिल्ले निजाणमग्गे' शक के निकलने का मार्ग उत्तर दिशा में है, और ईशान के निकलने का मार्ग दक्षिणदिशा में हैं 'दाहिणपुरथिमिल्ले रहकरपव्वए' शक्र का रतिकर नाम का पर्वत अग्नेयकोण में है ईशान का नन्दीश्वर द्वीप में उत्तर पूर्व में ईशान कोण में है। इस पर्वतों पर ये उत्तरते हैं। इस प्रकार से दोनों में भिन्नता है । 'सेसं तं चेच' बाकी का और सब वर्णन इस वर्णन के सिवाय शक्र का ईशान के जैसा ही हैછે અને ઈશાનના લઘુ પરાક્રમ છે. શકની ઘંટા સૂઘોષ નામની છે અને તેને વગાડવા માટે હરિર્ણગમોષી નિયુકત થયા છે. ઈશાનની નંદિઘોષા નામની
। छे तेन ॥१॥ भाटे धु५२॥ मना निभाई थ छे. “पालओ विमाणकारी" २ विमानन निर्माण ना२ पास व छ शानना विभाननु नि ४२॥२ ०५४ हे छे “पालगं विमाणं " शर्नु विमान पास नामर्नु छ भने शाननु विमान ०५४ नामनु छ. " उत्तरिल्ले निजाणमगे" शने निवानी भाग उत्तशा अने शानने नि:पानी भाग इक्षिय हशा छ. “ दाहिणपुरथिमिल्ले रइकरवबए" शन। રતિકર નામને પર્વત અગ્નિ ખૂણામાં છે અને ઈશાનને નન્દીશ્વરદ્વીપમાં ઉત્તરપૂર્વમાં (ઈશાન ખૂણામાં) છે. એ પર્વત ઉપર તે ઉતરે છે એ રીતે તે मनमi Te छे. “सेसं तंचेव" मा १ सिपाय माडीनु तमाम
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨