Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 649
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१८ उ०२ सू०१ कार्तिकश्रेष्ठिनः दीक्षादिनिरूपणम् ६३५ देवानुपियाः ! 'कि अन्ने लंबणेवा' किमन्यदालंबनं वा, 'आहारे वा' आधारो चा 'पडिबंधे वा प्रतिबन्धो वा हे श्रेष्ठिन् ! यदि भवान् प्रजिष्यति तदाऽस्माकं किमन्यदालम्बनमाधारः प्रतिबन्धो वा विद्यते यद् वयमत्र स्थास्याम इत्यर्थः, अत एव 'अम्हे विणं देवानुपिया! संसारभयुजिग्गा भीया जम्मणमरणाणं' वयमपि खल्ल देवानुपियाः! संसारभयोद्विग्ना भीताः जन्ममरणाभ्याम्, 'देवाणुप्पिएहिं सद्धि मुणिमुव्वयस्स अरहओ अंतियं मुण्डा भवित्ता अगाराओ अणगारियं पन्धयामो' देशानुप्रियः सार्द्ध मुनिसुव्रतस्य अर्हतोऽन्ति के मुण्डो भूत्वा अगाराद् अनगारितां प्रव नामः । 'तए णं से कत्तिये सेट्ठी' ततः खलु स कार्तिक इन पदों का संग्रह हुआ है। तो 'अम्हं देवाणुपिया' हे देवानुप्रिय ! हम लोगों को 'किं अण्णे आलंधणे वा' आपके सिवाय और क्या आलम्बन है, 'आहारे वा' क्या आधार-सहारा है । 'पडिपंधो वा' प्रतिबन्ध है कि जिसकी वजह से हमलोग इस संसार में रहे ? अतएव 'अम्हे वि णं देवाणुपिया' हे देवानुप्रिय ! हम लोग भी 'संसारभयुः विग्गा भीया जन्ममरणाणं' संसार भय से उद्विग्न बन चुके हैं एवं जन्म मरण के दुःखों से त्रस्त हो चुके हैं-सा 'देवाणुप्पिएहिं सद्धिं मुणिसुव्वयस्स अरहओ अंतियं मुंडा भवित्ता आगाराओ अणगा. रियं पन्वयाम।' आप देवानुप्रिय के साथ ही मुनिसुव्रत अर्हन्त के पास मुण्डित हैं।कर के इस गृहस्थावस्था के परित्याग से अनगारावस्था को धारण करेंगे। 'तए णं से कत्तिए सेट्ठी' उन १००८ वणिग्जनों का ऐसा कथन सुनकर उस कार्तिकसेठने 'तं नेगमसहस्स एवं वयासी' अन्तिके' ! पाने! सई थय। छे. तो "अहं देवाणुपिया" वानु. प्रिय ! समान "किं आलंबणे वा" मापना (शवाय भानु शु मम्मन छ ? "आहारे वा" शुभाधार छ १ अर्थात् सहारे। मीन शु छ ? 'पडिबंधी લા” શું પ્રતિબંધ છે? કે અમને કેણુ રોકનાર છે? કે જેથી અમે બધા भा संसारमा रही शीमे १२था “अम्हे वि णं देवाणुप्पिया" देवानुप्रिय! सभी ५५ "संसारभयुव्विग्गा जम्नमरणाणं" संसार सयथी द्विस सन्या छी मने म भरना माथी त्रासी गया छी तेथी "देवाणुप्पिएहि सद्धि मुणिसुवयस्स अरह ओ अंतिय मुंडा भवित्ता आगाराओ अणगारिय पव्वयामो" मा५ हेपानुप्रियनी साथ ॥ मुनिसुरत "तनी पासे भुडत થઈને આ ગૃહસ્થ વસ્થાને ત્યાગ કરીને અનગાર અવસ્થાને ધારણ કરીશ. "तए णं से कत्तिए सेदो" ते मा alg नातुं मे यन सीन ते શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨

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