Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 662
________________ ६४८ भगवती सूत्रे देवयम् 'जा सक्के देविदत्ताए उनबन्ने' यावत् शक्रो देवेन्द्रतया उपपन्नः, अत्र यावत्पदेन 'पंचविहार पज्नत्तीए' इत्यादीनां संग्रहः, 'तर णं से सक्के देविदे देवराया अगोत्रवन्नए सेस जहा- गंगदत्तस्स जात्र अंत काहि ततः खलु स शक्रो देवेन्द्रो देवराजोऽधुनोपपन्नक एव शेषं यथा गङ्गदत्तस्य यावदन्तं करिष्यति गङ्गदताद्वै क्षणमाह- 'नवरं ठिई दो सागरोवमा' नारं स्थितिः द्वि सागरोपमा 'सेसं तंचेत्र' शेषं तदेव - गङ्गदन इव, तथाहि कार्तिकः खलु मदन्त ! देवस्तस्माद् देवलोकादायुःक्षयेण भवक्षयेण स्थितिक्षयेण तस्वाद् देवात् व्युत्वा कुत्र गमिव्यति कुत्र उत्पस्यते ? इति प्रश्नः गौतम । ततच्छुत्वा महाविदेहे वर्षे सेरहयनि के इन्द्रश की पर्याय से उत्पन्न हो गये । यहाँ यावत् शब्द से 'पंचबिहाए जन्तीए' इत्यादि पदों का संग्रह हुआ है। 'तए णं से सके देविंदे देवराया०' अधुनोपपणक ही वे देवेन्द्र देवराज शक्र गंगदल की तरह यावत्, समस्त दुःखों का अन्त करेंगे। गंगदत्त की अपेक्षा विलक्षणता केवल स्थिति में ही है क्योंकि यहां इनकी स्थिति दो सागरोपम की हुई बाकी का और सब कथन गंगदत्त के जैसा ही है अब गौतम प्रभुसे ऐसा पूछता है-हे भदन्त ! कार्तिकदेव उस देवलोक से आयुः के क्षय से, भव के क्षत्र से, और स्थिति के क्षय से चत्रकर कहाँ जायेगा ? कहाँ उत्पन्न होवेगा ?, तो इसके उत्तर में प्रभुने उनसे कहा हे गौतम! वह वहां से चवकर महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध होगा, बुद्ध होगा, मुक्त होगा, परिनिर्वात होगा । एवं समस्त दुःखों का शडेनी पर्यायत्राजा मनी गया. अडियां यावत् शब्दधी 'पंचविद्दाए पज्जत्तीए' त्याहि होना सग्रड थये। छे. 'तए णं से सक्के देविंदे देवराया' तत्ला उत्पन्न થયેલ તે દેવેન્દ્ર, દેવરાજ, ઇન્દ્ર ગંગદત્તની માફક યાવત્ સમસ્ત દુઃખોને 'ત કરશે ગ’ગદ્યન્તથી વિશેષતા કેવળ તેની સ્થિતિમાં જ છે,કેમકે ત્યાં તેની સ્થિતિ એ સાગરેપની થઇ છે. માકીનું કથન ગંગદત્તના કથન પ્રમાણે સમજવુ. હવે ગૌતમસ્વામી પ્રભુને એવુ પૂછે છે કે હે ભગવાન્ કાર્તિક દેવ તે દેવલેાકથી આયુના ક્ષયથી, ભવાક્ષયથી અને સ્થિતિના ક્ષયથી ચવીને કયાં ઉત્પન્ન થશે ? તેના ઉત્તરમાં પ્રભુએ કહ્યું કે હે ગૌતમ ! તે ત્યાંથી ચવીને મહાવિદેહ ક્ષેત્રમાં સિદ્ધ થશે. યુદ્ધ થશે મુકત થશે. અને પરિનિર્વાંત થશે અને समस्त दु:मोनो मत २शे 'सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति' हे भगवान् आपनु શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨

Loading...

Page Navigation
1 ... 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710