Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१८ उ० ३ सू० ५ कर्मस्वरूपनिरूपणम्
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प्रश्नयति, 'सेकेणणं भंते! एवं बुच्चर' तत्केनार्थेन मदन्त ! एवमुच्यते ' जीवाणं पावे कम्मे जे य कडे जे य कज्जइ जे य कज्जिस्सर अस्थियाइ तस्स णाणतं' जीवानां पापं कर्म यत् कृतं यच्च क्रियते यच्च करिष्यते अस्ति परस्परं तस्य नानात्वम् इति प्रश्नः, भगवानाह - 'मागंदियपुत्ता!' इत्यादि । 'मागंदियपुत्ता।' हे मार्केदिकपुत्र | कर्मणोऽपत्यक्षत्वात् तत्प्रतियोगिकभेदेष्यपि अप्रत्यक्षतया प्रत्यक्षप्रमाणेन कर्मभेदस्य दर्शयितुमशक्यत्वात् युक्त्या भेददर्शनाय दृष्टान्मवतारयति' से जहानामए के पुरिसे धणु परामुस' तद्यथा नामकः कश्चित् पुरुषो धनुः परामृशति गृह्णातीत्यर्थः 'घणुं परामु सित्ता' धनुः परामृश्य-गृहीत्वा, 'उसु' परामुस' इषुं - बाणं परामृशति गृह्णाति, 'उसु परामुसित्ता' पुं परामृश्य-गृहीत्वा 'ठाणे ठाइ' स्थाने तिष्ठति 'ठाणे ठाइला' स्थाने स्थित्वा 'आययकनाययं उम्र पर पुनः माकन्दिक पुत्र पूछते हैं कि 'से केणद्वेणं भंते० ' हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि जीवों के जो कृन, क्रियमाण और करियमाण पापकर्म हैं उनमें आपस में भेद हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'मागंदिपुसा०' हे माकन्दिकपुत्र कर्म अप्रत्यक्ष है अतः तत्सम्बंधी जो भेद है वह भी अप्रत्यक्ष है अतः प्रत्यक्षप्रमाण से कर्म भेद दिखलाया नहीं जा सकता है अतः युक्ति से भेद दिखाने के लिये दृष्टान्त का प्रयोग किया जाता है जो इस प्रकार से है- ' जहा नामए केइ पुरिसे' इत्यादि जैसे कोई पुरुष हा और वह धनुर्धारी हो, अब वह उस धनुष को चलाने के लिये किसी स्थान पर जाकर उस पर वाण आरोपित करके उसे कान तक खींच कर ऊपर आकाश में छोडे तो कामाकन्दिकपुत्र ! ऐसी स्थिति में 'तस्स उसुस्स उड्डुं वेहासं उठिव
पायम्भसां लेड छे इरीथी भाऊ हिउयुत्र अछे छे से केणद्वेणं भंते !" ३ ભગવત્ આપ એવુ' શા કારણે કહેા છે કે જીવાએ કૃત ક્રિયમાણુ અને કરિષ્યમાણુ જે પાપકમ છે તેમાં પરસ્પરમાં કઇ ભેદ છે? તેના ઉત્તરમાં પ્રભુ
छे 'मागंदियपुत्ता !' हे भाीय पुत्र ! उर्भ प्रत्यक्ष नथी तेथी ते સ’બધી જે ભેદ છે, તે પણ પ્રત્યક્ષ નથી.જેથી પ્રત્યક્ષ પ્રમાણુથી કમના ભેદ બતાવી શકાય તેમ નથી. જેથી યુકિતથી કમના ભેદ બતાવવા દૃષ્ટાન્તના आश्रय सेवामां आवे छे. ते या प्रमाणे छे. 'से जहा नामए केइ पुरिसे' इत्यादि જેમકે કેાઈ ધનુર્ધારી પુરૂષ હાય તે પુરુષ ધનુષ ચલાવવા કોઇ સ્થાને જઈને તેના પર માણુ ચઢાવીને તેને કાન સુધી ખેંચીને ઉપર આકાશમાં તે માણુ छोडे तो भाङ हिपुत्र मे स्थितिमां 'तर उसुरस उद्धट वेहासं उव्विद्धरस समा
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શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨