Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 705
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१८ उ० ३ सू० ६ पुद्गलाहारस्वरूपनिरूपणम् ६९१ एवमुच्यते यावत् परिणमत्यपि नानात्वमिति । 'नेरइयाणं पावे कम्मे जे य कडे' नैरयिकाणां पापं कर्म यत् कृतं यत् क्रियते यच करिष्यते तेषां कर्मणां परस्परं नानात्वं परिदृश्यते ज्ञायते नवेति प्रश्नः, उत्तरमाह-'एवं चेव' एवमेव यथा जीव माश्रित्य कर्मणां परस्परं भेद इषुगमनदृष्टान्तेन निरूपितः तथैव नारककृतकर्मणामपि परस्परं भेदोऽस्त्येवेति ज्ञातव्यः 'जाव वेमाणियाणं यावत् वैमानिकानाम् वैमानिकपर्यन्तम् कृतादिकर्मणां भेदो ज्ञातव्य इति ॥सू०५॥ ___ पूर्व कर्मस्वरूपं निरूपितम् , कर्म च पुद्गलरूपमिति पुद्गलमूत्रमाह-'नेरइया णं' इत्यादि। मूलम्-नेरइया णं भंते ! जे पोग्गले आहारत्ताए गेण्हति तेसिं णं भंते ! पोग्गलाणं सेयकालंसि कइभागे आहारैति कइभागं निजरेंति ? मागंदियपुत्ता असंखेजइभागं आहारैति अणंतभागं निजरेंति। चक्किया णं भंते ! केइ तेसु निजरापोग्गलेसु आसइत्तए वा जाव तुयहित्तए ग णो इणट्रे समटे अणापापकर्मों में भिन्नता है ऐसा मैंने कहा है । अब माकन्दिक पुत्र प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'नेरइयाणं पावे कम्मे जेय कडे' हे भदन्त ! नरयिक जीवों के जो कृतक्रियामाण और करिष्यमाण पापकर्म हैं उनमें अन्तर है ? या नहीं है ? उत्तर में प्रभु ने कहा है-'एवं चेव' हे मान्दिक पुत्र ! जैसा इषु गमन के दृष्टान्त से जीव को आश्रित करके कर्मों में भेद निरूपित किया गया है उसी प्रकार से नारककृत कर्मों में भी परस्पर में भेद है ऐसा जानना चाहिये इसी प्रकार से भेद 'जाव वेमाणियाण' यावत् वैमानिक पर्यन्त कृतादि कर्मों का जानना चाहिये ॥ सू०५ ।। ड माहात्र शथी प्रसुने पूछे छे -'नेरइयाण पावे कम्मे जेयकडे' હે ભગવાન નારકીય જીવને જે કૃત, ક્રિયમાણ અને કરિષ્યમાણ પાપકમ ®. तमा मह मन्तर छ १ नथी १ तेना उत्तरमा प्रमुछे -'एवं चेव' हु भा४ हिय पुत्र माना मानना eitथी सपने देशीर मां પરસ્પરમાં જેવી રીતે ભેદ બતાવેલ છે. તે જ પ્રમાણે નારકીય જો એ કરેલા भामा ५ ५२२५२मा लेह छे. तेम सभा . मे शतना ले 'जाव वेमाणियाणं' यावत मानि: ५ तष्ठियमा मने रिव्यमार કર્મોના સમજવા. એ સૂ૫ રે શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨

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