Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 702
________________ ६८८ भगवतीसूत्रे टोका--'जीवाणं भंते!' जीवानां भदन्त ! 'पावे कम्मे जे य कडे पापं कर्म यत् च कृतम् 'जे य कज्जइ जे य कज्जिस्सइ यच्च क्रियते यच्च करिष्यते 'अस्थि याइ तस्स केइ णाणत्ते' अस्ति चापि तस्य किश्चित् नानास्लम् हे भदन्त ! जीवानां यत् कर्म कृतं यत् कर्म इदानीं क्रियते यच्च कर्म भविष्यकाले करिष्यते, एतेषां कर्मणां परस्परं भेदो वर्त्तने नवेवि प्रश्ना, भगवानाह-'हंता अस्थि' हन्त ! अस्ति हे मार्कदिक पुत्र! एतेषां कर्मणां जीवकृतानाम् अस्त्येव भेद इतिभावः । पुन: पहिले बन्ध का स्वरूप कहा गया है सेो यह बन्ध कर्म के ही होता है इसीसे अब कर्म सूत्र कहा जाता है। "जीवा जंभेते ! पावे कम्मे जे य कडे जेय कजा' इत्यादि। टीकार्थ--'जीवाणं भत! 'हे भदन्त ! जीवों के जो 'पावे कम्मे' पाप कर्म हैं। 'जे य कडे' कि जो पहिछे किये जा चुके हैं। 'जे य कलई जो अब उनके द्वारा किये जा रहे हैं। 'जे य कजिजस्लाई' और जो उनके द्वारा आगे किये जानेवाले हैं। 'अस्थिया तस्स केइ जाणतं' उनमें क्या कोई भेद है ? पूछने का अभिप्राय ऐसा है कि जीवोंने जो पापकर्म पहिले किये हैं, अथवा जे। वर्तमान में वे कर रहे हैं तथा भविष्य स्काल में जो वे करेंगे उन त्रिकालवर्ती कर्मों में क्या आपस में भेद हैं ? या नहीं है ? ऐसा यह प्रश्न मान्दिक पुत्र अनगार ने किया है इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'हंता अस्थि' ही मान्दिक पुत्र ! जीवों के उन कृन क्रियमाण और करिष्यमाण पापकर्मों में भेद है। अब इस બંધનું સ્વરૂપ કહેવાઈ ગયું છે, તે બંધ કમથી જ થાય છે જેથી સૂત્રકાર હવે કર્મ સૂત્રનું કથન કરે છે. 'जीवा णं भंते ! पावे कम्मे जे य कडे जेय कज्जइ' त्यहि टी -'जीवा गं भंते ! 3 मापन योना २ 'पावे कम्मे' ५।५ 'जेय कडे' है २ पडसा ४२यु छ. 'जे य कज्जई' भने २ वतभानमा तेस। ४२री २ह्या छे. 'जे य कज्जिस्सइ' भने २ मवि०५म तमा 'अत्थियाइ तरस केइ णाणत्त' मा शु. मे छ ? ५७वान त એ છે કે-જોએ જે પાપ ભૂતકાળમાં કર્યા હોય અને જે વર્તમાનમાં કરી રહ્યા હોય તેમજ જે ભવિષ્યમાં કરવાના હોય જે ભૂતકાળમાં કર્યો હોય વર્તમાનમાં કરી રહ્યા હોય અને ભવિષ્યમાં કરવાના હોય તે ત્રણે કાલ સંબંધી કર્મોમાં પરસ્પરમાં શું કઈ ભેદ છે ? અગર નથી ? આ પ્રમાણે भादीपुत्र अनारे पूछयु छ. तेना उत्तरमा प्रभु राई छ है-हता अत्थि' હા માકંદિપુત્ર જીવોએ તે કરેલા કૃત, ક્રિયમાણુ, કરતા અને કરિષ્યમાણ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨

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