Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 675
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१८ उ०३ सू०१ पृथ्वी कायादीनामन्तक्रियानिरूपणम् ६६१ एवं परवेमाणस्स' यावदेवं प्ररूपयतः, अत्र यावत्पदेन भाषमाणस्य प्रज्ञापयत इत्यनयोः संग्रहः, 'एयम नो सहति ३' एतमर्थ नो श्रद्धधन्ति नो प्रतियन्ति, नो रोचन्ते माकन्दिकपुत्रोक्ते विषये श्रद्धा नो कुर्वन्ति, 'एयमढे असहहमाणा' एतपर्थमश्रद्दवानाः, अप्रतियन्तः, अरोचमानाः सन्तः 'जेणेव समणे भगवौं महा. वीरे' यत्रैव श्रमणो भगवान् महावीरः 'तेणेव उवागच्छंति' तत्रैवोपागच्छन्ति, भगवतो महावीरस्य समीपमागता स्ते श्रमणा इत्यर्थः 'उवागच्छिता' उपागस्य 'समणं भगव महावीर वंदति नमसंति' श्रमणं भगवन्त महावीर वन्दन्ते नम. स्यन्ति 'वंदित्ता नमंसित्ता' वन्दित्वा नमस्यित्वा, ‘एवं वयासी' एवं-वक्ष्यमाण प्रकारेण अवादिषुः । एवं खलु भंते!' एवं खलु भदन्त ! 'मागदियपुत्ते अणगारे' माकन्दिकपुत्रोऽनगारः 'अम्हं एवमाक्खइ' अस्मान् एवमाख्याति 'जाव परूवेई' कहने का यह है कि माकन्दिक पुत्र के कहे गये विषय पर उन्होंने श्रद्धा नहीं की। यहांयावत्पद से 'भासमाणस्स, प्रज्ञापयत' इन पदों का संग्रह हुआ है इस प्रकार वे 'एयम असइहमाणा' माकन्दिक पुत्रोक्त अर्थ की अश्रद्धा करते हुए उस पर अप्रतीति करते हुए. अरुचि करते हुए 'जेणेव समणे भगवं महावीरे' जहां श्रमण भगवान् महावीर विराजामान थे। 'तेणेव उवागच्छई' वहाँ पर आये । 'उवागच्छित्ता' वहां जाकर के उन्होंने 'समणं भगवं महावीर वंदति नमंसति' श्रमण भगवान महावीर को वन्दना की नमस्कार किया 'वंदित्ता नमंसित्ता' वन्दना नम. स्कार कर 'एवं वयासी' फिर उन्होंने उनसे पूछा 'एवं खलु भंते ! मागंदियपुते अगगारे अम्हं एबमाइक्वई' हे भइन्त ! माकन्दिक पुत्र अनागारने ऐसा कहा है । 'जाव परूवे' यावत् प्ररूपित किया है ઉપજાવનાર ન બન્યું કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે માકંદીપુત્રે કહેલ વિષયમાં श्रद्धा नहि मही यावत् ५४थी "भाममाणस प्रज्ञापयतः” । पहन सड थयो छ. म शत तम। "एयमद्रं असहहमाणा" भावीपुत्रे કહેલ અર્થમાં અશ્રદ્ધા કરતા થકા. અપ્રીતિ કરતા થકા અરુચિ કરતા થકા "जेणेव समणे भगवं महावीरे" श्रम] भगवान महावीर ज्या मिरा भान् ॥ "तेणेव उवागच्छदत्यो त। मा०या. "उवागच्छिता" त्यो मावीन तेसोय "समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसई" श्रमणु भगवान महावीर स्वाभान ना ४१ नभ२४॥२ ४ीने "एवं वयासी" ते ५छी तयारी सशवानन मा प्रभार पूछयु "एवं खलु भंते ! माकंदियपुत्ते अणगारे अम्हं एवमाइक्खई" मन मात्र अनसारे मा प्रमाणे . "जाव શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨

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