Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 673
________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श०१८ उ०३ सू०१ पृथ्वीकायादीनामन्तक्रियानिरूपणम् ६५९ लेश्यावान् जीवः कायोतिकलेश्येभ्यो वनस्पतिकायिकेभ्यो निर्गत्य मानुष्यदेह माय -शुद्धसम्यक्त्वं प्राप्य सिध्यति, बुध्यते, मुच्यते, परिनिर्वाति, सर्वदुःखानामन्तं करोतीति भगवत उत्तरमिति भावः । 'सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति, यद् देवानुप्रियेण कथितं तत्सर्व सत्यमेति भावः, इतिएवं रूपेण कथयित्वा 'मागंदियपुत्ते अणगारे' माकन्दिकपुत्रोऽनगारः, 'समणं भगवं महावीर' श्रमणं भगवन्त महावीरम् 'जाव नमंसित्ता' यावद् नमस्यित्वा अत्र यावत्पदेन-वन्दते नमस्यति वन्दित्वा, एतेषां ग्रहणं भवति, 'जेणेच समणा णिग्गंथा तेणेव उवागन्छ।' यत्रैव श्रमणा निर्ग्रन्था स्तत्रैवोपागच्छति 'उवागच्छित्ता' उपागत्य 'समणे जिग्गंथे एवं वयाती' श्रमणान निर्ग्रन्थान् एवं-वक्ष्यमाणप्रकारेण च कापोपतलेश्यावाला वनस्पतिकायिकजीव कापोतलेश्यावाले अन्य वनस्पतिकायिक जीवों में से मरकर तुरत मनुष्य देह को प्राप्त करके उसमें शुद्ध सम्यक्त्व को लेकर के सिद्ध होता है, बुद्ध होता है, मुक्त होता है, परिनिर्वात होता है, और सर्व दुःखों का अन्त करता है, 'सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति' हे भदन्त ! आप देवानुप्रियने जो यह कहा है वह सर्वथा सत्य है २ इस प्रकार से कहकर 'मागंदियपुत्ते अणगारे' वे माकन्दिक पुत्र अनागार 'समण भगवं महावीरं' श्रमण भगवान् महावीर की 'जाव नमंसित्ता' यावत् नमस्कार कर 'जेणेव समणे निग्गंथे तेणेव उवागच्छइ' जहां श्रमण निन्थ विराजमान थे-'तेणेव उवागच्छई' यहाँ पर गये-यहां यावत् शब्द से 'वन्दते, नमस्यति, वन्दित्वा' इन पदों का संग्रह हुआ है । 'उवागच्छित्ता' वहां जा करके 'समणे निग्गंथे છે.–કાપતશ્યાવાળે વનસ્પતિકાયિક જીવ કપોત લેશ્યાવાળા બીજા વનસ્પતિકાયિક પણાથી મરીને તરત મનુષ્ય શરીરને મેળવીને તેમાં શુદ્ધ સમ્ય. કૃત્વ પામીને (સંયમ ધારણ કરીને) સિદ્ધ થાય છે, બુદ્ધ થાય છે, મુક્ત થાય छ. परिनित थाय छे. अने सोना मत ४२ छ. "सेवं भंते । सेवं भंते ! ति" 8 सावन म:५ हेवानुप्रिये रे युछे ते था सस्य छे.. ભગવદ્ આપે કહેલ સર્વ યથાર્થ છે. આ પ્રમાણે કહીને "मागंदियपुत्ते अणगारे" ते माहिय पुत्र मना२ "समयं भगवं महावीरं" श्रम लगवान मडावी२२ "जाव नमंसित्ता" यावत् नमः॥२ प्रशने 'जेणेव समणे णिग्गंथे तेणेर उबागच्छइ" ज्यां श्रम नि मिसा छे. "तेणेव' उवागच्छई" त्या तमो गया. म. यापत् ५४थी 'वन्दते, नमस्यति, बन्दित्वा या पहानी A8 थयो छे. "उवागच्छित्ता" त्यां "समणे जिग्गये। શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨

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