Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १८ उ० ३ सु० ४ बन्धस्वरूपनिरूपणम् ६८५ प्रज्ञप्तो नारकाणाम् 'तं जहा' तद्यथा-'मूलपगडिवधे य उत्तरपगडिबधे य' मूलप्रकृति बन्धश्च उत्तरप्रकृतिबन्धश्च ! ‘एवं जाय वेमाणियाण' एवं यावद्वैमानिकानाम् , एवं-नारकचदेव यावद् वैमानिकानाम् , तिरश्च आरभ्य शेषत्रयोविंशति दण्ड कानामपि इमौ भावबन्धौ भवत इति भावः। 'णाणावरणिज्नस्स णं भंते ! कम्मस्स' ज्ञानावरणीयस्य खलु भदन्त ! कर्मणः 'काविहे भाश्वंधे पन्नत्ते' कतिविधो भावबधः प्रज्ञप्तः ? भगवान ह-'मा दियपुत्ता ! दुविहे भावबंधे पन्नत्ते' हे माकन्दिक पुत्र ! द्विविधो भावबन्धो ज्ञानावरणीयस्य कर्मणो भवतीति, भेदद्वयमेव दर्शयति भी उनके होता है उत्तर प्रकृतिरूप भावबन्ध भी उनके होता है । भाव बन्धविषयक यह कथन 'एवं जाच वेमा०' नारक के जैसा यावत्-वैमानिकदेवों के भी जानना चाहिये । अर्थात् तिर्यश्च से लेकर बाकी के २३ दण्डकों में भी ये दोनों भावयन्ध होते हैं। ‘णाणावरणिजस्स०' अब इस स्त्र द्वारा यह पूछा जा रहा है कि ज्ञानावरणीय जो कर्म है उसका भावबन्ध कितने प्रकार का होता है ? उत्तर में प्रभुने कहा 'मागंदिय पुत्ता ! दुविहे भावबन्धे पण्णत्ते' हे माकन्दिक पुत्र ! ज्ञानावरणीय कर्म का भावबन्ध मूलप्रकृति के रूपमें और उत्तरप्रकृति के रूप में दोनों रूप में होता है । 'नेरझ्याणं.' इस सूत्र द्वारा ऐसा पूछा गया है कि नैरगिक जीवों का जो ज्ञानावरणीय कर्म है उसका भावबन्ध कितने प्रकार का वहां है ? उत्तरमें प्रभु ने कहा है-'मागंदिक पुत्ता ! दुविहे भावबंधे पण्णत्ते' हे माकन्दिक पुत्र ! नारक जीवों का जो ज्ञानावरणीय कर्म है
અને ઉત્તર પ્રકૃતિરૂપ ભાવબંધ પણ થાય છે. ભાવબંધ સંબંધી આ કથન 'एवं जाव वेमाणिया०' ना२४७१ प्रभार यावत् वैमानिय हे सुधी समj. અર્થાત તિર્યંચથી આરંભીને બાકીના તેવીસ દંડકમાં પણ આ બન્ને પ્રકા२ना नाम थाय छे. 'णाणावरणिज्जस्स.' या सूत्रांशथी ५७पामा मार છે કે-જ્ઞાનાવરણીય જે કર્મ છે, તેને ભાવબંધ કેટલા પ્રકારને થાય છે? तना उत्तर प्रभुणे :यु, 'मागंदिय पुत्ता ! दुविहे भावबंधे पण्णसे!' 3 માદિક પત્ર ! મૂલપ્રકૃતિબંધ પણાથી અને ઉત્તર પ્રકૃતિપણાથી જ્ઞાનાવરણીય
भनामावबंध मन्न १२थी छ 'नेरइयाणं०' मा सूत्रथी मे ५ युछे કે નરયિક જીને જે જ્ઞાનાવરણીય કર્મ છે, તેને ભાવબંધ કેટલા પ્રકા.
ना छ १ तेन उत्तरमा प्रमुछे -'मागंदिय पुत्ता ! दुविहे भावबंधे पण्णत्ते ! 3 माहय पुत्र! ना२४७२ ज्ञानवीय मछ, ते।
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨