Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 658
________________ ६४४ भगवतीसूत्रे तुम् , 'जाव धम्ममाइक्खिउ' यावद् धर्ममाख्यातुम् । अत्र यावत्पदेन 'सयमेव मुंडाविउ सयमेव सेहाविउ, सयमेव सिक्खाविउ, सयमेव आयारगोयरविणयवेणइयचरणकरणजायामायावत्तियं' इत्यन्तस्य ग्रहणं भवति । एतस्य व्याख्या द्वितीयशत के प्रथमोद्देशके स्कन्दकचरिते द्रष्टव्या। 'तए णं मुणिमुम्बए अरहा' ततः खलु-श्रेष्ठिनः प्रार्थनाया अनन्तरं खल मुनिसुव्रतोऽईन् ‘कत्तियं सेट्टि णेगमट्ठसहस्सेणं सद्धिं सयमेव पब्बावेइ' कार्तिकं श्रेष्ठिन नैगमाष्टसहस्रेण सार्द्ध स्वय मेव प्रव्राजयति-दीक्षयति यावद्धर्ममा ख्याति-धर्मोपदेशं ददातीत्यर्थः, धर्मोंपदेशपकारमाह-एवं' इत्यादि, ‘एवं देवाणुपिया' एवम्-मदुक्तकथनानुरूपेण हे देवानुप्रिय ! 'गंतव्वं गन्तव्यम् जीवरक्षार्थ भूमि पश्यन्नेव गमनं कर्तव्य मित्यर्थः ‘एवं चिट्ठियव्यं' एवम्-शुद्धभूमौ ऊर्वस्थानेनेति शास्त्रोक्तकथनप्रकारेणैव स्थातव्यम् 'जाव संजभियन्वं' यावत् संयमितव्यम् प्राणादिसंयमे संयतितव्यम् , मुडाविउं, लयमेव सेहाविळ, सयमेव सिक्खाविउं आयार गोयरवि. जयवेणइयचरणकरण जायामायावत्तियं' यहां तक का पाठ गृहीत हुआ है । इन पदों की व्याख्या द्वितीय शतक के प्रथम उद्देशक में स्कन्दक चरितमें की गई है अतः वहीं से देखलेना चाहिये। 'तएणं मुणि. सुब्धए.' कार्तिकसेठ की इस प्रार्थना के बाद मुनिसुव्रत अर्हन्त ने उस कार्तिकसेठ को १००८ वणिरजनों के साथ २ ही अपने हाथ से ही भागवती दीक्षा प्रदान की और धर्मका उपदेश दिया । धर्मोपदेश का प्रकार इस प्रकार से है-'एवं देवाणुप्पिया !" मदुक्त कथन के अनु. सार हे देवानुप्रिय ! 'एवं गतव्वं०' जीव रक्षा के लिये भूमिको देखते हुए ही चलना चाहिये । शुद्धभूमि में शास्त्रोक्तपद्धति के अनुसार ही खडे होना चाहिये । 'जाव संजमिय' प्राणादिसंयम में यतना रखनी चाहिये। यहां यावत्पद से 'एवं निसीयवं, एवं तुयट्टियव्वं मुंडाविउ, सयमेव सेहाविउ, सयमेव सिक्खावि, सयमेव आयार गोयरविण. यवेणइयचरणकरणजायामायावत्तिय' मा सुधीना पाइने सब थये। छे. मा પદેની વ્યાખ્યા બીજા શતકના પહેલાં ઉદેશમાં સ્કન્દકના ચરિત્રમાં આવી छ. ती त्यांची सम देवी 'तर णं मुणिसुपर' ति ।8नी मा प्रार्थना પછી મુનિસુવ્રત અહંને તે કતિકશેઠને એક હજાર આઠ વણિકૂજન સાથે પિતાના હાથથી ભાગવતી દીક્ષા આપી અને ધર્મને ઉપદેશ આપે. ધર્મના पशनी प्रा२ मा प्रभारी छे. 'एवं देवाणुप्पिया' 3 देवानुप्रिय! में gan प्रमाणे 'एवं गंतव्वं' ७१ २क्षा भाट भूमि ५२ न०४२ शमी ननधन यार જોઈએ, શુદ્ધ ભૂમિમાં શાસ્ત્રમાં કહેલ પદ્ધતિ પ્રમાણે જ ઉભું રહેવું જોઈએ. 'जाव संजमियवं' आ सयममा यतन रामवीन. मडियां या શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨


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