Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

Previous | Next

Page 656
________________ भगवती सूत्रे भदन्त ! लोकः पाऐंग -अतिशयेन दोप्तः प्रज्वलित इव लक्ष्यते लोकः, 'आलित्तपलित्ते णं भने ! लोए' आदीप्तपदीप्तः खलु मदन्त ! लोकः अतिशयेन ज्वलित मज्मलित इवेत्यर्थः 'जाव अणुगामियत्ताए भविस्सई' यावदनुगामिकतायै भवियति अब यावत्पदेन- जराए मरणेणय, से जहा नामए केइ गाहावई अगारंसि झिपायमागंसि जे से तस्य भंडे भवइ, अप्पभारे मोल्लगुरुए, तं गहाय आयाए पगतमंतं अकमइ, एस मे नित्यारिए समाणे पच्छापुराए हियाए सुहाए खेमाए निस्सेय साए' इति संग्रहः । एषां पदानां व्याख्या द्वितीयशतके प्रथमोद्देशके स्कन्दकप्रकरणे विलोकनीया | एवामेव ' एवमेव यथा गाथापते दद्यमानगृहाद् अल्पमारबहुमूलपक वस्तु निष्कासितं सत्र भविष्यकाले हितार्थ भवति तथैव 'ममवि' ममापि एगे रहा है। 'पलित्ते णं भंते ! लोए' अतिशयरूप से जल रहा है, 'अलि. तालित्तण भंते ! लोए' हे भदन्त ! यह लोक अनिशप रूपसे ज्वलित प्रज्वलित, बना हुआ है । 'जाव अणुगामियत्ताए भविस्सई' यहां यावस्पद से 'जराए मरणेण य, से जहानामए केइ गाहावई अगारंसि झियायमाणंसि जे से तस्थ भंडे भवह, अप्पभारे मोल्लगुरुए, तं गहाय, आयाए एगंतमंतं अवकमइ, एस में नित्यारिए समाणे पच्छा, पुराए. हियाए, सुहाए, खेमाए, निस्सेयसाए' इस पाठ का संग्रह हुआ है। इन समस्त पदों की उपाख्या द्वितीय शतक के प्रथम उद्देशक में स्कन्दक प्रकरण में की जा चुकी है अतः वहीं से देख लेनी चाहिये । सो जैसे गाथापति के दह्यमान गृह से निकाली गई अल्पभारवाली और बहुमूल्यवाली वस्तु उसे भविष्यकाल में हितादि के निमित्त होती है, उसी प्रकार से 'मम वि एगे आया भंडे.' यह आत्मा है वह मा प्रमाणे -'आलित्ते णं भते रोए' 3 भगवान् 24 18.31, १२भी, વિગેરે જુદા જુદા ઉપસર્ગ અને પરીષહરૂપ અને જન્મ, મરણરૂપ, જવાળા भामाथी च्यात थयुठे-मर्यात भजी २युछे. 'पलित्ते णं भंते लोए' मत्यत३५थी मणी २यु छ. 'अलितपलिते गं भंते ! लोए' सन् 241001 सत्य त३५थी सित- सित २७ २ छे. 'जसर मरणेणय, से जहाणामए केइ गाहावई अगासि झियायमाणंसि जे से तत्थ भंडे मवइ, अप्पभारे मोल्लगुरुए, त गहाय आयाए एगंतमंते अवक्कमइ, एस मे नित्थारिए समाणे पच्छापुराए हियाए, सुहाए, खेलाए, निस्से यसाए' मा ५।8ने सब . म मथा पहानी व्याच्या બીજા શતકના પહેલા ઉદ્દેશામાં અંદકના પ્રકરણમાં કરવામાં આવી છે. જેથી ત્યાંથી તે સમજી લેવી જેવી રીતે ગઢપણ અને મરણના ભયથી શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૨

Loading...

Page Navigation
1 ... 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710