Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१८ उ०१ सू०१ प्रथमाप्रथमत्वे प्रवाभवसिद्धिकद्वारम् ५५७
नो भवसिद्धिक नो अभवसिद्धिकः खलु भदन्त ! 'जीवे नो भव० पुच्छा' जीवो नो भवसिद्धिक नोअभवसिद्धिकभावेन प्रथमोऽप्रथमोवेत्येव रूपेण पृच्छा प्रश्नः करणीयः, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'पढमे नो अपढमे' प्रथमो नो अप्रथमः सिद्धः अनेन सिद्धस्यैव ग्रहणात् इत्युत्तरम् ' णो भवसिद्धिय णो अवसिद्धिए मंते ! सिद्धे नो भव० नो अभव०' नो भवसिद्धिकः नो अभव सिद्धिकः खलु भदन्त ! सिद्धः नो भवसिद्धिक नोअभवसिद्धिकभावेन प्रथमः अप्रथमो वा इत्याकारकः प्रश्नः, भगवानाह - 'पढमे नो अवढमे' प्रथमो नो अप्रथमः 'एवं हुतेण विदोह वि' एवं पृथक्त्वेनापि द्वयोरपि जीवसिद्धयोः यथा एकवचनमाश्रित्य नो भवसिद्धिक नो अभवसिद्धिकजीवे सिद्धे च प्राथस्वाप्राथम्ययो
सिद्धिए णं भते जीवे नो भव० पुच्छ।' हे भदन्त ! नो भवसिद्धिक नो अभवसिद्धिक भावकी अपेक्षा से नो भवसिद्धिक जीव और नो अभव सिद्धिक जीव प्रथम हैं या अप्रथम है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं'गोयमा ! पढमे नो अपढमे' हे गौतम! वह प्रथम है अप्रथम नहीं है। नो भवसिद्धिक-नो अभवसिद्धिक जीव सिद्ध होते हैं अतः इससे सिद्धिका ही ग्रहण हुआ है।
अब गौतम प्रभु से पूछते हैं- 'णो भवसिद्धि य णो अभवसिद्धिया णं भंते! इत्यादि नो भवसिद्धिको अभवसिद्धिक सिद्ध नो भव - सिद्धिक नो अभवसिद्धिक भाव की अपेक्षा से प्रथम हैं ? या अप्रथम है, उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'पहमे नो अपढमे' हे गौतम । सिद्ध प्रथम हैं । अप्रथम नहीं हैं । 'एवं पुहुत्तेणं वि दोण्ह वि' एकवचन को आश्रित करके जिस प्रकार से नो भवसिद्धिक नो अभवसिद्धिक एकजीव और अभवसिद्धिए णं भते ! जीवे नोभवपुच्छा" डे ભગવન્ નાભસિદ્ધિક અને નાઅભવસિદ્ધિક જીવ ભાવની અપેક્ષાએ પ્રથમ છે ? કે અપ્રથમ છે ? तेना उत्तरमा अनु छे -- "गोयमा ! पढमे नो अपढमे. " हे गौतम ते પ્રથમ છે. અપ્રથમ હૈ!તા નથી. નેસસિદ્ધિક નેમભવસિદ્ધિક જીવ સિદ્ધ હાય છે. જેથી તેઓમાં સિદ્ધપણાનું જ ગ્રહણ થયું છે. હવે ગૌતમ સ્વામી अलुने खेवु छे छे है--' जोभवसिद्धि य णो अभवसिद्धिए णं भवे !" ઈત્યાદિ હે ભગવન્ ના ભવસિદ્ધિક ના અભવસિદ્ધિક--સિદ્ધ ભાવની અપેક્ષાથી પ્રથમ છે કે અપ્રથમ છે ? તેના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે છે કે—— "पढमे नो अपढमे" हे गौतम सिद्ध प्रथम छे. अप्रथम नथी. "एवं पुहुत्तेनं वि दोन्हं वि" मे वचनो आश्रय ने ने रीते । अवसिद्धि ना
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨