Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 621
________________ 3 प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१८ उ०१ सू०२ संयतासयतत्वे योगद्वारम् ६०७ णम् । 'अवेदओ जहा अफसाई' अवेदको यथा अपायी, अवेदको जीवपदे सिद्ध पदे च नो चरमोऽपितु अचरमः, मनुष्यपदे अवेदकः स्पाचरमः स्यादचरमः ।१२। ____ 'ससरीरी जाव कम्मगसरीरी जहा आहारओ' सशरीरी यावत्कार्मणशरीरी यथा आहारकः अत्र यावत्सदेन औदारिकवैक्रियाहारकतैजसशरीराणां ग्रहणं भाति, सशरीरी कदाचिच्चरमः स्यात् कदाचिदचरमः स्यात् , 'नवरं जस्स जं अस्थि' नवरं यस्य यदस्ति, यस्य जीवादे दिशं शरीरं भवेत् तस्य जीवादे स्तादृशशरीरसम्बन्धादेव घरमत्वमचरमत्वं बोध्यम् । 'असरीरी जहा नो भवसिद्धिय नो अमरसिद्धिो ' अशरीरी यथा नो भवसिद्धिक नो अपवसिद्धिकः सिद्धः अशरीरी सर्वत्र पदेषु नो चरमोऽपितु अचरम एव भवतीति ।१३॥ वेदों का ग्रहण हुआ है । 'अवेदओ जहा अफसाई' अवेदक जीव पदमें और सिद्ध पदमें चरम नहीं हैं। अपितु अचरम है । मनुष्य पदमें अवेदक कदाचित् चरम और कदाचित् अचरम है। ससरीरी जाप कम्मगसरीरी जहा आहारओ' सशरीरी यावत् कार्मणशरीरी आहारक के जैसे है। यहां यावत्पद से औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तेजस इन शरीरों का ग्रहण हुआ है। इस प्रकार शरीरी आहारक के जैसा कदाचित् चरम और कदाचित् अवरम होता है । 'नवरं जस्स जं अस्थि' जिस जीव को जो शरीर होता है उस जीव को उस शरीर के सम्बन्ध से ही चरमस्व अचरमस्व और अचरमय जानना चाहिये । 'असरीरी जहा नो भव सिद्धिय नो अभवसिद्धिओ' अशरीरी नो भवसिद्धिक नो अभवसिद्धिक के जैसे सवत्र पदों १५४यी श्री ५३५ वर्नु ७ यु छ. 'अवेदओ जहा अकसाई' भ३४४ જીવપદમાં અને સિદ્ધપદમાં ચરમ નથી પરંતુ અચરમ છે. મનુષ્યપદમાં અદક हायित् यम भने हायित् मय छे. मसरीरी जाव कम्मगमरीरी जहा आहारको' सशरी यावत् भy शशी मा.२४ प्रभारी महि યાવસ્પદથી ઔદારિક, વૈક્રિય, આહારક, તેજસ આશરીરે ગ્રહણ થયા છે. સરીશ, આહારક પ્રમાણે કોઈવાર ચરમ અને કઈવાર અચરમ डाय छे. 'नवर जस्म जं अत्थि' रे ने शरी२ हाय छ, a જીવને તેવા શરીરના સંબંધથી જ ચરમપણું અને અચરમપણું સમr'. 'अमरीरी जहा नो भवसिद्धिय नो अभवसिद्धिओ' अशी नामपसि. દ્વિક અને ને અભાવસિદ્ધિક પ્રમાણે બધા પદમાં ચરમનથી પરંતુ અચમજ શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૨

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