Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 638
________________ ६२४ भगवती सूत्रे एवं यथा एकादशशते सुदर्शनस्तथैव निर्गतः 'जाव पज्जुनास ' यावत्पर्युपास्ते, अत्र यावत्पदेन स्नानादिकं कृत्वा परिहितवस्त्रः स्वकीयगृहात्म तिनिष्क्रामति, प्रतिनिष्क्रम्य पादविहारचारेण हस्तिनापुरं मध्यं मध्येन निर्गच्छति, निर्गत्य यत्रैव सहस्रानधानम् यत्रेव मुनिसुव्रतोऽईन् तत्रैवशेपागच्छति उपागत्य पञ्चागमपूर्वकं मुनिसुत्रमन्तं त्रिः कृत्वः आदक्षिणप्रदक्षिणं कृत्वा त्रिविधया मनोवाक्का किया पर्युपासनया पर्युपास्ते, इति विज्ञेयम् । 'तए मुणिसुन्वर अरहा ' ततः खलु मुनिसुव्रतोऽर्ह'न 'कत्तियस्स सेहिस्स' कार्तिकाय श्रेष्ठिने समागतपर्षदे च 'धम्म कहा जात्र परिसा पडिगया' धर्म कथा यात् परिषत् प्रतिगता, aat भगवान मुनिसुव्रतः कार्त्तिकश्रेष्ठिनं तथा महातिमहालगं परिषदं चोद्दिश्य aari कथितवान् धर्मश्रवणं कृत्वा च परिषत् प्रतिगतेति । 'तए से कत्तिए में सुदर्शन के सम्बन्ध में कथन किया गया है ठीक उसी प्रकार से प्रभु को वन्दना के लिये निकला । 'जाव पज्जुबासह' उसने यावत् प्रभु की पर्युपासना की यहां यावस्पद से 'स्नानादिकं कृत्वा परिहितवस्त्रः स्वकीयगृहात् प्रतिनिष्क्रामति, प्रतिनिष्क्रम्य पादविहारचारेण हस्तिनापुरं मध्यं मध्येन निर्गच्छति, निर्गत्य यत्रैव सहस्राम्रवनमुद्यानं, त्रैव मुनिसुव्रतोऽर्हन् तत्रैव उपागच्छति, उपागत्य पंचाभिगमपूर्वक मुनिसुव्रतम् हस्तत्रिः कृत्वः आदक्षिणप्रदक्षिणं कृत्वा त्रिविधया मनोवाक्या पर्युपासनया पर्युपास्ते' यह कथन गृहीत हुआ है। इस का अर्थ स्पष्ट है । 'तए णं मुनिसुव्यए अरहा' इसके बाद मुनिसुव्रत अर्हन्त ने 'कन्तियस्स सेट्ठिस्स' कार्तिक सेठ एवं समागत विशाल उस परिषदा के लिये 'धम्म कहा जाव परिसा पडिगया' धर्मोपदेश दिया धर्मकथा सुनकर तहेब निग्गओ" अगियारमां शतम्भ सुदृर्शन शेठना संयधमा अडेवाभां આવેલ છે. તેજ પ્રમાણે તે કાર્તિક શેઠ પણ મુનિસુવ્રત પ્રભુને વંદના ४२वा नीउज्येा. "जाब पज्जुत्रासह " तेथे यावत् प्रभुनी पर्युपासना ४री. अहि यावत् पहथी — “स्नानादिकं कृत्वा परिहितवस्त्रः स्वकीयगृहात् प्रतिनिक्रामति प्रतिनिष्कम्य पादविहारचारेण हस्तिनापुरं मध्यं मध्येन निर्गच्छति, निर्गत्य यत्रैव सहस्रास्रवनमुद्यानं यत्रैव मुनिसुव्रतोऽर्हन् तत्रैव उपागच्छति, उपागत्य पंचाभिगमपूर्वकं मुनिसुव्रतं हस्तत्रि कृत्वः आदक्षिणप्रदक्षिणं कृत्वा त्रिवि घया मनोवाक्कायक्या पर्युपासनया पर्युपास्ते" मा स्थन अणु थयुं छे. मान अर्थ स्पष्ट छे "तए णं मुनिसुवाए अरहा ” ते पछी भुनिसुव्रत भई ते " कत्तियस्स सेट्ठिस्स” अर्ति शेड ते त्यां आवेल ते परिषहाने " धम्म कहा जाव परिक्षा पडिगया" धर्मदेशना साथी धर्मदेशना सांलजीने ते पछी શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨

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