Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१८ उ०२ सू०१ कात्तिकश्रेष्ठिनश्चरमत्वनिरूपणम् ६२५ सेट्टी मुणिसुव्वयस्स अरहओ अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म ततः खलु स कार्तिक श्रेष्ठी मुनिसुव्रतस्याई तोऽन्तिके धर्म श्रुत्वा निशम्य-हृदये अवधार्य हह तुह० उठाए उठे' हृष्टतुष्टचित्तानन्दितः प्रीतिमनाः परमसौमनस्थितो हर्षवंशविसर्प
द्धृदयः उस्थया उत्तिष्ठति, 'उहाए उठेत्ता' उत्थया उत्थाय 'मुणिमुब्वयं जाव एवं वयासी' मुनिसुव्रतं यावदेवमवादीत् अत्र यावत्पदेन 'अरह तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ करित्ता बंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता' एतदन्तस्य संग्रहो भवति, एवंच-स कार्तिकः श्रेष्ठी मुनिसुन्नतमहन्तं त्रिः कृत्वः आदक्षिणप्रदक्षिणं करोति, कृत्वा वन्दते नमस्यति, इन्दिता नमस्यित्वैवमवादीत् जाव एवमेयं भंते !' यावद् एवमेतद् भदन्त ! अत्र यावत्पदेन 'सदहामि गं भंते ! निग्गंथं पाश्यणं, पत्तियामि णं भंते ! निग्गंथं पारयणं, अब्भुट्टेमिण भंते ! निग्गंथं यावत् परिषद् विसर्जित हो गई। 'तए ण से कत्तिए सेट्ठी मुणिसुव्वयस्स अरहओ अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म' इसके बाद वह कार्तिकसेठ मुनिसुव्रत अर्हन से धर्मोपदेश सुनकर और उसे हृदय में धारण कर 'हतुट्ठ० उट्ठाए उडे।' बहुत हो अधिक हृष्टतुष्ट चित्तानन्दित हुआ।
और अपने आप ही गृहीत स्थान से उठा यहां 'प्रीतिमनाः परमसौ. मनस्थितो, हर्षवशविसर्पन हृदय इन पदों को भी कह लेना चाहिये । 'मुनिसुव्वयं जाव एवं वयासी' उठकर उसने मुनिसुव्रत अर्हन की आदक्षिणा प्रदक्षिणा पूर्वक उनकी वन्दना की नमस्कार किया वन्दना नमस्कार कर फिर उसने प्रभुसे इस प्रकार कहा-'जाव एवमेयं भंते सहहामिणं भंते निग्गंथं पावयणं, पत्तियामिणं भंते! निग्गंथं पावयणं, रोएमि गं भंते ! निग्गंथं पावयणं अन्भुट्टेमिणं भंते ! निग्गंथं पाययणं' हेभदन्त ! કાર્તિક શેઠ મુનિસુવ્રત પાસેથી ધર્મનું શ્રવણ કરીને યાવત્ પરિષદ પિતપોતાના स्थान पाछी 45 "तए णं कचिए सेट्ठी मुणि सुव्वयस्स अरहओ अंतिए धम्म सोचा निसम्म' भने तनयमा "हट्टतुट्ट, उढाए उद्वेइ" ते घो। तुष्टઅને આનંદ ચિત્તવાળે થ અને પિતે જ પિતાની જાતે જ તે સ્થાનથી उध्यो मडिया "प्रीतिमनाः परमसौमनस्यितो हर्ष वशविसर्पद् हृदयः' ! पह! पY समा . "मुणिसुव्वयं जाव एवं वयासी” तेथे ही मुनिसुव्रत भई-तनी આદક્ષિણ પ્રદક્ષિણાપૂર્વક વન્દના કરી નમસ્કાર કર્યા વન્દના નમસ્કાર કરીને ते ५७तेथे प्रभुने 20 प्रमाणे यु:--"जाव एवमेयं भंते ! सहहामि गं भंते ! निग्रोथं पावयणं' पत्तियामि णं भंते ! निग्गथं पावयणं, अब्भुटेमि णं भंते !
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શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨
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