Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 637
________________ प्रमेयचन्द्रिकाटीका श०१८ उ०२ सू०१ कार्तिकश्रेष्ठिनश्चरमत्वनिरूपणम् ६२३ गृह नगरं गुणशिलकं चैत्यम् तु हस्तिनापुर नगरं सहस्साम्रबनमुद्यानं वक्तव्यमिति । अत्र भगवान् मुनिसुव्रतः समवस्तः । 'जाव परिसा पज्जुवास' यावपरिषत् पर्युपास्ते मुनिसुव्रतस्याऽऽगमनं श्रुत्वा नगरात् परिषन्निर्गता, भगरतः समीपे पर्षद आगमनं धर्मकथा श्रवणं परिषन मुनिसुव्रतं पर्युपास्ते । 'तएणं से कत्तिए सेट्ठी' ततः खलु स कार्तिकः श्रेष्ठी 'इमीसे कहाए लद्धढे समाणे हट्ट तुदु०' अस्याः कथाया लब्धार्थः सन् हृष्टतुष्ट चित्तानन्दितः प्रीतिमनाः परमसौमनस्थितो हर्षवश विसर्पद्धृदयः ‘एवं जहा एकारमसर सुदंसणे तहेव निग्गओ' प्रकरण में और इस मुनिसुव्रतस्वामी के कथ्यमान प्रकरण में कोई विशेषता है तो वह नगर और उद्यान को लेकर ही है। महावीरस्वामी का आगमन राजगृहनगर और गुणशिलक उद्यान में कहा गया है और मुनिसुव्रतस्वामी का आगमन हस्तिनापुर में स्थित सहस्राम्रवन उद्यान में कहा गया है। इसलिये यह सब कथन यहां पर कर लेना चाहिये । 'जाव परिसा पज्जुवासई' यावत्-मुनिसुव्रत अर्हन का आग. मन सुनकर परिषदा-नगर से बाहर निकली । उसने उन्हें बन्दना की नमस्कार किया प्रभुने उसे धर्मका उपदेश किया परिषदाने उनकी पर्यु: पासना की 'तएण से कत्तिए सेट्टी' इसके बाद वह कार्तिकसेठ जथ 'इमीसे कहाये लट्टे समाणे हट्टतुट्ट०' प्रभुके आगमनरूप कथा से परिचित हो गया-तब वह हृष्टतुष्टचित्तानन्दित हुआ । प्रीतिमनवाला हुभा, परमसौमनस्थित हुआ और हर्षवशविसर्पहृदयवाला हुआ। 'एवं जहा एकारसमसए सुदंसणे तहेव निग्गओ' जैसा ११ वे शतक ગ્રહણ કર્યું છે. જેથી તે બધું જ પ્રકરણ અહિયાં પણ ગ્રહણ થયેલ છે તેમ સમજવું જે તે પ્રકરણમાં અને આ મુનિસુવ્રતના પ્રકરણમાં કંઈ પણ વિશેષપણું હોય તે તે ફક્ત નગર–અને ઉદ્યાનની બાબતમાં જ છે. મહાવીર પ્રભુનું આગમન રાજગૃહનગર અને ગુણશિલક ઉદ્યાનમાં કહેલ છે. અને મુનિ સુવ્રતનું આગમન હસ્તિનાપુરનગર અને સહસ્ત્રાપ્રવન ઉદ્યાનમાં કહેલ છે. थी त्यां मधु ॥ ४थन डी ५२ री . 'जाव परिसा पज्जुबासह' થાવત મુનિસુવ્રત અહંતનું આગમન સાંભળીને પરિષદા–નગરથી નીકળી તેણે મુનિસુવ્રતને વંદના કરી નમસ્કાર કર્યા પ્રભુએ તેને ધમરને ઉપદેશ આપે. परिषहार मानी ५३ पासना 50 "तएणं से कत्तिए सेद्री" पछी त ति: 28 "इमीसे कहाए लद्धटे समाणे हद्वतु?" प्रभुना मागमन ३५ ४था જાણી ત્યારે તે હણતુષ્ટ અને આનંદયુક્ત ચિત્તવાળો થયો, પ્રીતિયુક્ત वित्तवाणी थये। अत्यत सौमनस्थित थये. "एवं जाव एक्कारसमसए सुदंसणे શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨

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