Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text ________________
६२६
भगवती सूत्रे
पावयर्ण' इति संग्राह्यम् । श्रद्दधे खलु भइन् । नैर्ग्रन्ध्यं वचनम् प्रत्येमि खल भदन्त ! नैग्रन्ध्यं प्रवचनम् रोचे खलु भदन्त | नैर्ग्रन्थ्य प्रवचनम् अभ्युत्तिष्ठामि खलु मदन्त ! नैर्ग्रन्थ्य' मवचनम् इतिच्छाया, कियत्पर्यन्तमित्याह - जाव से जहेयं तुम्भे वदह' यावत् तद्यथेदं यूयं वदथ, अत्र यावत्पदेन 'तहमेयं भंते ! अवितहमेयं भंते असंदिद्धमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते! पडिच्छियमेयं भंते । इच्छियपडिच्छिय मेयं भंते!' इति संग्राह्यम् । तथ्यमेतद् भदन्त ! अवितथ्यमेतद् भदन्त ! असंदिग्धमेतद् भदन्त । इच्छितमेतद् भदन्त ! प्रतीच्छितमेव भदन्त ! इच्छित - प्रतीच्छितमेतद्भदन्त ! इतिच्छाया । 'नवरं देवाणुपिया' नवरं देवानुप्रिया ! नवरं - केवलं विशेषस्त्वयम् हे देवानुमियाः 'नैगमहसदस्सं आपुच्छामि' नैगमाष्ट सहस्रमापृच्छामि, 'जेटुपुचं च कुटुंबे ठावेमि' ज्येष्ठपुत्रं च कुटुम्बे स्थापयामि 'तर णं अहं देवाणुपियाणं अंतियं पव्वयामि' ततः खलु अहं देवानुप्रियाणाजैसा आपने कहा है यावत् वैसा ही यह निर्ग्रन्थ प्रवचन है। यहां यावत् 'सहहामि णं भंते !' से लेकर 'अभुमि णं भंते । निग्गंथं पाव
6
' यह पाठ संगृहीत हुआ है । और यह पाठ 'जाव' से ' जहेयं तुग्भे वदह' यहां तक का लिया गया है। यहां जा यावत्पद आया है। उससे 'तह मेयं भंते ! अविनहमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते! इच्छयपडिच्छियमेयं भंते ! इन पदों का संग्रह हुआ है। 'नवरं देवापिया' हे देवानुप्रिय ! 'नेगमद्वसहस्सं आपुच्छामि' मैं १००८ afroजनों से जाकर पूछता हूं' और पूछकर 'जेहपुत्त' च कुडुंबे ठावेमि' अपने ज्येष्ठ पुत्रको अपने स्थान पर कुटुम्ब के भरण पोषण करने के लिये स्थापित कर देता हूँ । 'तए णं अहं देवाणुपियाण अंतियं पव्वयामि' बाद में वहां से आकर में आप देवानुप्रिय के पास दीक्षित
·
निग्गंथं पावयणं" हे भगवन् खाये ? प्रमाणे धुं यावत् नियथ प्रवथन ते प्रभाछे, मडियां यावत् शहथी ' सद्दहामि णं भंते" मे वाऽयथी भारलीने "अब्भुट्ठेमि णं भंते! निगाथं पावयण" मा पाठ थड थ. याने ते पाठ " जाव" थी " जहेयं तुब्भे वयह" अहि सुधी सीधेस छे. मडियां यावत्यहमास छे. तेनाथी " तहमेयं भंते! अवितहमेय भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छ्रियमेयं भंते !" मा होना सग्रड थयो छे. 'णवरं देषाणुपिया” डे हेवानु प्रिय ! " नेगमदूलहस्सं आपुच्छामि " हु मेड भनाने छुछु भने तेथथेोने पूछीने “जेहूं पुत्तं पुत्रने भारा स्थाने उटुमनुं भरणपोषण देवाणुपियाणं अंतियं पव्वयामि” ते पछी
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨
डलर र पशि कुटुंबे ठावेमि” श्रेष्ठ १२वा भाटे स्थायु छु' "तए णं अहं त्यांथी भावीने हु आप हेवानु
Loading... Page Navigation 1 ... 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710