Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमैयवन्द्रिका टोका श०१८ उ०२ सू०२ कार्तिकश्रेष्ठिनः दीक्षादिनिरूपणम् ६२७ मन्तिके प्रव्रजामि भगवानाह-'जहासुर देवाणुप्पिया। मा पडिबंधं करेह' यथा मुख देवानुप्रिय ! मा प्रतिबन्धं कुरु ॥सू० १।
अथ कार्तिकश्रेष्ठिनो दीक्षादिवक्तव्यतामाह-'तए ण' इत्यादि
मूलम्-"तए णं से कनिए सेट्टी जाव पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव हथिणापुरे नयरे जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता णेगमीसहस्सं सहावेइ, सदायित्ता एवं वयासी, एवं खलु देवाणुप्पिया ! मए मुणिसुव्वयस्स अरहओ अंतियं धम्मे निसंते, से वि य मे धम्म इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए, तए णं अहं देवाणुप्पिया! संसारभयुविग्गे जाव पव्वयामि तं तुमे गं देवाणुप्पिया! किं करेह, किं ववसह, किं भे हियइच्छिए, किं भे सामत्थे । तए णं तं गं गमट्टसहस्सं पि तं कत्तियं सेटुिं एवं वयासी-जइ णं देवाणुप्पिया ! संसारभयुध्विग्गा जाव पव्वइस्संति, अम्हं देवाणुप्पिया! किं अन्ने आलंबणे वा, आहारे वा, पडिबंधे वा, अम्हे विणं देवाणुप्पिया! संसारभउविग्गा भीया जम्मणमरणाणं देवाणुप्पिएहिं सद्धिं मुणिसुव्वयस्स अरहओ अंतियं मुंडा भवित्ता आगाराओ अणणारियं पव्वयामो। तए णं से कत्तिए सेट्टी तं जाना चाहता हूँ। इस प्रकार से कार्तिक सेठ का कथन सुनकर 'जहा सुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेह' हे देवानुप्रिय ! तुम्हे जैसे सुख हो वैसा करो। परन्तु कल्याण के मार्ग में आने के लिये विलम्ब मत करो। ऐसा मभुने उससे कहा ॥ सू० १॥ બિયની પાસે દીક્ષા લેવા ચાહુ છું. આ પ્રમાણે કાર્તિક શેઠનું કહેવું Ainal "जहासुई देवा गुप्पिया मा पडिबंधं करेह" 3 तुषानुप्रिय रे પ્રમાણે તમને સુખ લાગે તે પ્રમાણે કરે. પરંતુ કલ્યાણના માર્ગમાં આવવામાં વિલંબ ન કરે એ પ્રમાણે પ્રભુએ તેને કહ્યું. મેં સૂ. ૧ છે
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨
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