Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे स्वजनसन्मानादिकृत्येषु इष्टार्थानां हेतुषु कृषिपशुपोषणवाणिज्यादिषु च 'कोडंबेसुय' कुटुम्बेषु च स्वपरस्वजनवर्गेषु विषयभूतेषु, ‘एवं जहा रायप्पसेणइज्जे' एवं यथा राजप्रश्नीये, 'चित्ते' चित्रा, यथा राजनीय पूत्र चित्रसारथे वर्णनं कृतं तेनैव रूपेण इहापि सर्व वर्णनीयम्, कियत्पर्यन्तमित्याह-'जाव च
खुभूए' यावच्चक्षुर्भूत इत्यादि, अनेनेदं मुचितं भवति, ‘मंतेसुय गुज्जेस्मय रहस्सेमुय निच्छ एमुय वषहारेसु य आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे सयस्स वि कुटुंबस्स पर सहायक होता रहता था। तथा उन्हें इष्ट अर्थ की प्राप्ति कैसे हो यह बात के कारणों की तर्फ वह सदा तत्पर रहता था-जैसे कृषि कराने में उन्हें मदद पहुंचाना, पशुपोषण में सहायता पहुंचाना, व्यापार में सहायता पहुंचाना आदि २। इतना ही यह नहीं करता था किन्तु'कोडंबेसु य' स्वजन और परजन के जो कुटुम्ब के लोग होते थे उन्हें भी यह प्रत्येक कार्यो में उसी प्रकार से सहायता देने में पीछे नहीं हटता था। यह कार्तिकसेठ राजप्रश्नीय सूत्र में वर्णित चित्र सारथि के जैसा अपनी प्रत्येक प्रवृत्ति में सचेष्ट बना रहता था। यही बात ‘एवं जहा रायप्पसेणइज्जे चित्ते जाव' इस सूत्र द्वारा प्रकट की गई है। अर्थात् राजप्रश्नीय सूत्र में चित्रसारथि का जैसा वर्णन किया गया है वेसा ही इसके सम्बन्ध में भी वर्णन जानना चाहिये । वहां का वर्णन 'चक्खुन्भूए' इस पद तक यहां ग्रहण किया गया है । इससे यह सूचित होता है-'मंतेसु य गुज्झेप्नु य रहस्सेसु य निच्छ एसु य ઈષ્ટ અર્થની પ્રાપ્તિ કેવી રીતે થાય તેના કારણે ની તરફ તે સદા તત્પર રહેતા હતા. જેમકે ખેતી કરવામાં તેઓને મદદ પહોંચાડવી. પશુ પાલનમાં સહાયતા પહોંચાડવી. વ્યાપારમાં મદદ કરવી વિ. વિ. તે એટલું જ કરતે न तो परतु "कोडुबेसु य” २१४मने ५२०४५ समधी से। કુટુંબીઓ હતા તેઓને પણ તે દરેક કાર્યોમાં તેજ રીતે સહાયતા આપવામાં પાછા પડતું ન હતું. આ કાતિક શેઠ-રાજપ્રશ્રીય સૂત્રમાં વર્ણવેલ ચિત્ર સારથી પ્રમાણે પિતાની દરેક પ્રવૃત્તિમાં સાવચત રહેતે હતે. से पात "एवं जहा रायपसेणइज्जे" मे सूत्रांशथी मतावर छ. अर्थात् ૨ાજ પ્રશ્નીય સૂત્રમાં ચિત્ર સારથીનું વર્ણન જેવી રીતે કરવામાં આવ્યું છે, તેજ પ્રમાણેનું વર્ણન કાર્તિક શેઠને સંબંધમાં પણ સમજવું ત્યાંનું આ १ "चक्खुभूए" नेत्र३५ ते! मा ५४ सुधी माहियां अड ४२वामा मा०यु छे. तथा को पात सूचित थाय छे ४-मंतेसु य गुज्झेसु य रहस्सेसु य
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨