Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 620
________________ भगवतीसूत्रे आहारकवदेव मनःप्रभृतिकयोगवान् स्याच्चरमः स्यादचरमः, 'जस्स जो जोगो अस्थि यस्य यो योगोऽस्ति, यस्य जीवादेहिशो योगो मनामभूतिको भवेत् तस्यैव स योगो वक्तव्य इति । 'अजोगी जहा नो सन्नि नो असन्नी' अयोगी यथा नो संनि नो असंज्ञी, अयोगी-चतुर्दशगुणस्थानवर्ती केवली अयोगीत्यर्थः, जीवपदे सिद्धपदे चाचरमो मनुष्पपदे च चरमो ज्ञातव्यः ।१०। 'सागारोवउत्तो अणागारोवउत्तोय जहा अणाहारओ' साकारोपयुक्तोऽनाकारोपयुक्तश्च यथाऽनाहारका, जीवपदे सिद्धपदे चैकत्वेन पृथक्त्वेनापि नो चरमः अपितु अवरमः, अन्यत्र स्याचरमः स्यादचरम इत्यर्थः ।११।। 'सवेदगो जाव नपुंसगवेदगो जहा आहारओ' सवेदको यावद् नपुंसकवेदको यथा आहारकः, स्याचरमः स्यादचरमः, अत्र यावत्पदेन स्त्री पुरुषवेदयोहमनोयोगी और वचनयोगी का ग्रहण हुआ है। 'जस्स जो जोगो अस्थि जिस जीव को जो योग-मन आदि होता हैं उसी को वही योग कहना चाहिये । 'अजोगी जहा नो सन्नि नो असन्नी' चक्षुर्दशगुण स्थानवर्ती जीव को अयोगी कहा गया है । यह अयोगी जीवपदमें और सिद्धपद में अचरम है और मनुष्य पदमें चरम है। 'सागारोवउत्तो अणागारोवउत्तो य जहा अणाहारओ' साकारोपयोगयुक्त और अना. कारोपयुक्त जीव अनाहारक के जैसा जीवपदमें और सिद्धपदमें एकवचन और बहुवचन में चरम नहीं है । अपितु अचरम है । अन्यत्र कदाचित् चरम और कदाचित् अधरम है। 'सवेदगो जाव नपुंसगवेदगो जहा आहारओ' सवेदक यावत् नपुंसक वेदक आहारक के जैसा कदाचित् चरम और कदाचित् अचरम है। यहां यावस्पद से स्त्री पुरुष હોય છે. અહિયાં યાવત્પદથી મનેગી અને વચનગીનું ગ્રહણ થયું છે. 'अस्स जो लोगो अस्थिरे ने मनाया विगेरे२ योगाय छे. तर तर यो सेवा 'अजोगी जहा नो सन्नी नो असन्नी' थीमा शुस्थानना રહેલા જીવને અગી કહ્યા છે. આ અગી જીવપદમાં અને સિદ્ધપદમાં नयम छ. मन मनुष्य ५४मा २२म छे. 'सागारोवउत्तो अणागारोवउत्तोय जहा अणाहारओ' सा५यास युइत भने मना५युत ४१ मनाहा२४ પ્રમાણે જીવ પદમાં અને સિદ્ધપદમાં એકવચન અને બહુવચનમાં ચરમ હતા નથી. પરંતુ અચરમ છે. અને બીજે કદાચિત્ ચરમ અને કદાચિત્ અચરમ छ. 'सवेदगो जाव नपुसकवेदगो जहा आहारओ' सव४ यावत नपुस। વેદક આહારક પ્રમાણે કદાચિત્ ચરમ છે. અને કદાચિત્ અચરમ છે. અહિં શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨

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