Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 590
________________ भगव तीसरे नारकादेरस्ति तद् मतिज्ञानादि तस्यैव वक्तव्यं नान्यस्येति । "केवलनाणी जीवे मणुस्से सिद्धेय एगत्तपुहुत्तेणं पढमा नो अपदमा" केवलज्ञानी जीवो मनुष्यः सिद्धच, एते एकत्वपृथक्त्वेन प्रथमा एव, नो अप्रथमाः, केवलज्ञानस्य प्रथमत एवं लब्धत्वेन तदपेक्षया प्रथमत्वात् , ____एकत्वेन पृथक्त्वेन च एषामालापका एवं कर्तव्याः, तथाहि-"केवलनाणी जीवे पढमे नो अपढमे केवलनाणी जीवा पढमा नो अपढमा, केवलनाणी मणुस्से पढमे नो अरढमे, केवलनाणी मणुस्सा पढमा नो अपढमा, केवलनाणी सिद्ध पढमे नो अपढमे, केवलनाणी सिद्धा पढमा नो अपढमा' इत्येवं रूपेण प्रकृते आलापकत्रयमवगन्तव्यमिति। "मइ अन्नाणी सुयअन्नाणी विभंगनाणी एगत्त पुहुत्तेणं जहा आहारए" मत्यज्ञानी श्रुताज्ञानी विभङ्ग ज्ञानी एकत्वपृथक्त्वेन यथा आहारकः, अप्रथमो नतु प्रथमः, अनादौ संसारे अनेकशः सभेदस्याज्ञानलाभादिति । इति नवमं ज्ञानद्वारम् ९ का विचार करना चाहिये । 'केवलनाणी जीवे मणुस्से सिद्धे य एगत्तपुहत्ते णं पढमा नो अपढमा' केवलज्ञानी जीव, मनुष्य और सिद्ध ये सब एकवचन और बहुवचन में प्रथम ही हैं अप्रथम नहीं हैं। केवलज्ञान जीव को पहिले पार ही लब्ध होता है इस अपेक्षा केवलज्ञानी अप्रथम न होकर उसकी अपेक्षा प्रथम ही है। एकत्व और पृथक्त्व से इनके आलापक इस प्रकार कहना चाहिये'केवलनाणी जीवे पढमे, नो अपढमे, केवलनाणी जीवा पढमा नो अपढमा, केवलनाणीमणुस्से पढमे, नो अपढमे, केवलनाणी मणुस्सा पढमा, नो, अपढमा केवलनाणी सिद्धे पढमे, नो अपढमे, केवलमाणी सिद्धा पढमा, नो अपदमा' इसरूप से प्रकृत में ये तीन आलापक हैं । 'अन्नाणी महअन्नाणी सुय अन्नाणी विभंगनागी एमत्तपुहुत्त णं जहा आहारए' भत। मप्रथमताना पिया२ री सेव . 'केवलनाणी जीवे मणुस्से सिद्धे य एगत्तपुहुत्ते णं पढमा नो अपढमा' ज्ञानी , मनुष्य मने सिद्ध એ બધા એકવચન અને બહુવચનથી પ્રથમ જ છે. અપ્રથમ નથી. કેવળ જ્ઞાન જીવને પ્રથમવાર પ્રાપ્ત થાય છે. તે અપેક્ષાએ કેવળજ્ઞાની પ્રથમ જ છે. એકત્વ, અને પૃથકત્વથી તેના આલાપક આ પ્રમાણે કરી લેવા. केवळनाणी जीवे पढमे नो अपढमे केवलणाणी जीवा पढमा णो अपढमा केवल गाणी मणुस्से पढमे, नो अपढमे, केवल नाणी मणुम्सा पढमा, नो अपढमा, केवलनाणी सिद्धे पढमे नो अपढमे, केवलनाणी सिद्धा पढमा, नो अपढमा' मा शतनामा प्र४२६मा मा ऋण मावाप। छ. "महअन्नाणी, सुयबन्नाणी, विभगनाणी एगत्तपुहुत्तेणं जहा आहारए' भति શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨

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