Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 588
________________ भगवतीसूत्रे अपथमा अपि, बहुवचनमाश्रित्य प्रथमत्वम प्रथमत्वमपि भाति प्राथमिकाकषायप्राप्त्यपेक्षया प्रथमा भवन्ति द्वितीयादि प्राप्त्यपेक्षया अपथमा अपि भवन्तीति "सिद्धा पढमा नो अपढमा" सिद्धाः पथमाः नो अप्रथमाः, बहुवचनमाश्रित्य सिद्धाः प्रथमा एव नतु कदाचिदपि अप्रथमाः सिद्धत्वविशिष्टाऽकषायपर्याय स्येतः पूर्वमलब्धत्वादिति । इत्यष्टमं कषायद्वारम् ।।८।। अथ नवमं ज्ञानद्वारमाह-'जाणी" इत्यादि । ___ "गाणी एगत्तपुहुत्तेणं जहा सम्मदिट्ठी" ज्ञानीएकत्वपृथक्त्वेन यथा सम्यदृष्टिः स्यात् प्रथमः स्यादपथम इत्यर्थः तत्र केवली प्रथमः अकेवली प्रथमज्ञान भी हैं और अप्रथम भी हैं । प्राथमिक अकषाय प्राप्ति की अपेक्षा से वे प्रथम भी हैं और दूसरे तीसरेवार आदि में अकषाय भाव की अपेक्षा से वे अप्रथम भी हैं । 'सिद्धा पढमा नो अपढमा' सिद्ध प्रथम ही हैं, वे अप्रथम कदाचित् भी नहीं हैं। क्योंकि सिद्धपर्याय प्राप्ति से पहिले यह सिद्ध विशिष्ट अकषाय भाव की प्राप्ति उन्हे कभी नहीं हुई है। - आठवां कषायद्वार समाप्त नवां ज्ञानद्वार इस नौवें ज्ञानद्वार में गौतमने प्रभु से ऐसा पूछा है- गाणी एगत्त. पुहुत्ते णं जहा सम्मदिट्टी' हे भद् त ! ज्ञान भावकी अपेक्षा ये एकवचन और बहुवचन को लेकर एकज्ञानी जीव एवं नाना जीव को आश्रित करके-ज्ञानी जीव क्या प्रथम है ? या अप्रथम है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-गौतम ! ज्ञानी जीव सम्यग्दृष्टि के जैसा प्रथम भी है और પણ છે અને અપ્રથમ પણ છે. પહેલાં અકષાયભાવ પ્રાપ્ત થવાની અપેક્ષાએ તેઓ પ્રથમ પડ્યું છે અને બીજી ત્રીજી વાર વિગેરેમાં કષાયભાવ પ્રાપ્તિથી तमा भप्रथम५६छे. "सिद्धा पढमा णो अपढमा” सिद्धो प्रथम न छे. ती કેઈ પણ સમયે અપ્રથમ હોતા નથી. કેમકે સિદ્ધ પર્યાય પ્રાપ્ત થયા પહેલાં આ સિદ્ધ પદયુક્ત અકષાય ભાવની પ્રાપ્તી તેઓને કોઈપણ સમયે થઈનથી. છે આઠમું કષાયદ્વાર સમાપ્ત છે नवभु ज्ञानदार-- આ નવમાં જ્ઞાનદ્વારમાં ગૌતમ સ્વામીએ પ્રભુને એવું પૂછયું છે કે-- 'णाणी एगत्तपुहुत्तेण जहा सम्म दिदी' 3 मवान् ज्ञानमानी मपेक्षाथी - વચન અને બહુવચનને આશ્રય કરીને એક જ્ઞાનીજીવ અથવા અનેક જ્ઞાની જી શું પ્રથમ છે ? કે અપ્રથમ છે? તેના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨

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