Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१८ उ०१ सू०१ प्रथमाप्रथमत्वे कषायद्वारम् ५७३ प्राप्तौ प्रथमः, प्रपतितचारित्रस्य पुनः प्राप्तौ अप्रथमः । "एवं मणुस्से वि" एवं मनुष्योऽपि अनेन क्रमेण अषायि-मनुष्यसम्बन्धेऽपि ज्ञातव्यम् चारित्रस्य प्रथम पाप्तौ प्रथमोऽकषायी मनुष्यः, प्रपतितचारित्रस्य पुनः प्राप्तौ अप्रथम इति । "सिद्धे पढमे नो अपढमे" सिद्धः प्रथमो नो अपथमः सिद्धस्तु अकषापी प्रथम एव भवति सिद्धत्वानुगतस्य अपायभावस्य प्रथमप्राप्तिसद्भावात्, सिद्धत्व. युक्ताकषायभावस्य पूर्वममाप्तत्वेन तदानीमेव संप्राप्तत्वात्, "पुहुत्तेणं जीवा मणुस्सा वि पढमा वि अपढमा वि" पृथक्त्वेन जीवा मनुष्या अपि प्रथमा अपि प्रथम होता है और कदाचित् अप्रथम होता है ऐसा जो कहा गया है वह यथाख्यातचारित्र की प्रथम प्राप्ति में प्रथम कहा गया है और जो जीव चरित्र से पतित हो जाता है वह पुनः कषायवाला बन जाता है इस अपेक्षा अप्रथम कहा गया है । 'एवं मणुस्से वि' इसी प्रकार का कथन अकषायी मनुष्य के संबन्ध में भी जानना चाहिये। मनुष्य को जय यथाख्यातचारित्र की प्राप्ति प्रथमधार होती है तब वह अकषायी प्रथम है और जब वह एकषायी होकर पुनः द्वितीयावार अकषायी बनता है तब वह अप्रथम है । 'सिद्धे पढमे, नो अपढमे सिद्ध अकषायी की अपेक्षा से प्रथम ही हैं अप्रथम नहीं हैं। क्योंकि सिद्धत्व सहचरित अकषायभाव उन्हें उसी समय प्राप्त होता है। इसलिये यह सिद्धत्व युक्तअकषायभाव उन्हें पहिले अप्राप्त होने के कारण वे प्रथम ही कहे गये हैं। अप्रथम नहीं। 'पुहुत्तेणं जीवा मणुस्सा वि पढमा वि अपढमा वि' नाना जीव और नाना मनुष्य भी प्रथम અપ્રથમ હોય છે એ પ્રમાણે જે કહેવામાં આવ્યું છે તે યથાખ્યાત ચરિત્રની પ્રથમ પ્રાપ્તિમાં પ્રથમ કહ્યા છે અને જે જીવ ચારિત્રથી ભ્રષ્ટ થઈ જાય છે. ते शथी पाया। मनी लय छे. ते शते ते मप्रथम हो . "एवं मणुस्से वि" मा शत शतनु ४थन पाय २ड़ित मनुष्यना સંબંધમાં પણ સમજવું. મનુષ્યને ચારિત્રની પ્રાપ્તિ જ્યારે પ્રથમવાર થાય છે, ત્યારે તે અકષાયી પ્રથમ છે. અને જ્યારે પતિત ચારિત્રવાળા બનીને
शथी यात्रिनी प्राति उशन २५३पायी मन त्यारे ते प्रथम छे. "सिद्ध पढमे नो अपढमे" पायानी अपेक्षाथी सिद्ध प्रथम छ मप्रथम नथी. કેમ કે સિદ્ધપણને સહચારી અકષાયભાવ તેઓને તે જ સમયે પ્રાપ્ત થાય છે. તેથી સિદ્ધપણાવાળે અકષાયભાવ તેને પહેલાં અપ્રાપ્ત હેવાને पारो तसा प्रथम उपाय छ, मप्रथम हाता नथी. 'पुहत्तेणं जीवामणुस्सा वि पढमा वि. अपढमा वि' भने । मन मन: मनुष्य। प्रथम
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨