Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे
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शतिदण्डकेषु सुप्तादिभेदान प्ररूपयन्नाह-'नेरइया णं भंते !' इत्यादि । 'नेरइया णं भंते !' नैरयिकाः खलु भदन्त ! किं सुत्ता पुच्छा' किं सुप्ता इति पृच्छा पुच्छेति पदेन 'किं जागरा' किं सुतनागरा' इत्यनयोग्रहणम् तथा च हे भदन्त ! ये इमे नारकास्ते सुप्पा वा जागरिता वा सुप्तनागरिता वेति गौतमस्य प्रश्ना, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'नेरइया सुत्ता' नैरयिकाः मुप्ताः विरतिरूपबोधाभावेन ते नरयिकाः सर्वदा सुप्ता एव कथ्यन्ते सर्व वाक्यं सावधारणमिति न्यायेन सुप्ता एन ते नारका इत्यर्थः । एककारव्यवच्छेधं स्वयमेव मूलकारः प्रदर्शयति-'नो जागरा नो सुत्तजागरा' नो जागरिताः विरस्य कहे गए हैं अब यहां से चतुर्विंशति दण्डकों में सुप्तादि भेदों की प्ररूपणा की जाती है-इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है-"नेरइया णं भंते ! किं सुत्ता पुच्छा." हे भदन्त ! नारक जीव क्या सुप्त हैं ? तथा पृच्छा पद से-"क्या जागरिल हैं ? क्या सुप्त जागरित दोनों रूप हैं ? ऐसा और ग्रहण कर लेना चाहिये। इस के उत्तर में प्रभु कहते हैं"गोयमा !" हे गौतम !" नेरहया सुता'' नैरयिक जीव सुप्त हैं नैरयिक जीव सुप्त हैं इसका भाव ऐसा है कि नैरयिकों में विरतिरूप जागरित अवस्था का सर्वदा अभाव रहता है इसलिए वे सुप्त के जैसे ही कहे गये हैं । जितने भी वाक्य होते हैं वे अवधारणा सहित होते हैं इस नियम के अनुसार यही नैरयिक जीव सुप्त ही हैं ऐसा कहा गया समझना चाहिये यहां "ही" पद से जिन अवस्थाओं का निराकरण किया गया है वे "जागरित एवं सुप्त जागरित अवस्थाएँ हैं अतः "नो जागरा नो सुत्त जागरा" ये नारक जीव इन दो अवस्थाओं वाले नहीं
હવે અહિંથી ચેવિસ દંડકમાં કહ્યા પ્રમાણેના સુમાદિ ભેદની પ્રરૂપણ કરવામાં આવે છે આમાં ગૌતમસ્વામી પ્રભુને એ પ્રમાણે પૂછે છે , नेरझ्या णं भंते ! किं सुत्ता पुच्छा' मग ! :२४ ७१ शुसुत छ ? કે, શું જાગૃત છે ? અગર સુસજાગૃત બંને રૂપે છે ? તેના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે छ , 'गोयमा' 3 गौतम 'रइया सुत्ता' ना२४ीय छ। सुस्त छ. ना२४ीय જ સુખ છે, તેમ કહેવાનો હેતુ એ છે કે, નારકીમાં વિરતીરૂપ જાગ્રત અવસ્થાને હમેંશા અભાવ રહે છે. જેથી તેઓ સુમની જેમ જ કહેવાય છે. જે વા ઉચ્ચારવામાં આવે છે. તે અવધારણાવાળા હોય છે નિયમ અનુસાર અહિયાં નારકીય જી સુપ્ત જ છે એમ કહેવામાં આવ્યું છે. અહિયાં 'ही' ५४थी त सने सुनत अवस्थानु घडए थयु छे. 'नो जागरा
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨