Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका ठीका श० १६ उ० ८ सू० १ लोकस्वरूनिरूपणम्
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भवन्ति । 'अहवा एर्गिदिय देसाय अनिंदिय देसाय बेईदियस्स य देसे' अथवा एकेन्द्रियदेशाथ अनिन्द्रियदेशाश्च द्वीन्द्रियस्य च देशः 'अहवा एगिदिय देसाय अगिदियदे साथ बेदियाण य देसा' अथवा एकेन्द्रियदेशाश्च अनिन्द्रिय देशाश्च द्वीन्द्रियाणां च देशाः । अत्र प्रथमो द्विक्संयोगः । त्रिसंयोगेषु च द्वौ द्वौ भङ्ग कार्यों तेषु मध्यमो भङ्गः 'एर्गिदियदेसाय अणिदियदेसाय बेदियस्स य देसा' इत्येवं रूपको न भवति द्वीन्द्रियस्य च देशाः इत्यस्य लोकान्वोपरितनभागे संभवात् यतो द्वीन्द्रियस्य लोकोपरितनचरमान्ते मारणान्तिकसमुद्घातेन गतस्यापि तत्र लोकान्वोपरिचरमान्ते देशएव संभवति न तु प्रदेशवृद्धिहानिकृतलोकदन्तकत्रशाद ने कमतरात्मक पूर्ववरमान्तव देशाः लोकस्योपरितनचरमान्तअनिन्द्रिय के देश नियमतः होते है । 'अहवा - एनिंदिय देसाय अणिदिय देसाय बेईदियरस य देसे' अथवा वे एकेन्द्रिय के देश हैं, और अनिन्द्रिय के देश हैं तथा वहां वेहन्द्रिय जीव का एकदेश है, 'अहवा एदि देसा य, अनिंदिय देसाय बेहदियाण य देसा' अथवा वे एकेन्द्रिय के देश हैं, अनिन्द्रिय के देश है, और वे इन्द्रियों के देश हैं, यहां प्रथम भंग द्विक्संयोगी है, त्रिक संयोगी भंगो में दो दो भंग कहना चाहिये, इनमें मध्यम भंग 'एगिंदियदेसाय अनिंदियदेसा य, बेह दिग्रस य देसा' ऐसा है सो वह भंग यहां नहीं होता है क्योंकि बेहन्द्रिय जीव के अनेक देशों का लोकान्त के उपरितन भाग में होना असंभव है । क्योंकि द्वीन्द्रिय के लोक के उपरितन चरमान्त में मारणान्तिक समुद्घात द्वारा जाने पर भी वहां उसका देश ही संभवित होता है।
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अनीन्द्रियना द्वेश नियमतः होय हे "अहवा एर्गिदियदेसा य, अणिदियदेसाय बेइंदियरस देखे” अथवा सेन्द्रियनो देश छे अने अनीन्द्रियनो पशु देश छे. तथा त्यां मे न्द्रियवाजा करने थे! देश छे. "अहवा एगिंदिय देसाय अनिंदिय देखाय, बेइंदियाणय देसा" अथवा भेडेन्द्रियनो देश छे. मनीन्द्रियनो देश છે. અને એ ઇન્દ્રિયાના પણ દેશે છે. અહિયાં પહેલા ભંગ દ્વિક સચાગી છે. ને ત્રિક સ’ચૈાગી ભગેામાં અએ ભંગ કહેવા જોઈએ તેમાં મધ્યમ ભંગ “एगिंदियदेसा य, अनिंदियदेसा य, बेइंदियरस य देसा" मे प्रभा छे. ते मंग अडी થતા નથી, કેમકે એ ઈન્દ્રિયવાળા જીવેાના અનેક દેશાનું, લેાકાન્તની ઉપરના ભાગમાં હૈાવાનુ` સ’ભવતું નથી. કેમકે દ્વીન્દ્રિયનુ' લેાકના ઉપરના ચરમાન્તમાં મારાન્તિકના સમુદ્ઘાતથી જવા છતાં પણ ત્યાં તેના દેશની જ સંભવના હાય છે. કેમકે પ્રદેશની હાની વૃદ્ધિ દ્વારા થવા વાળી વિષમતાથી અનેક भ० ३५
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨