Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे
'अमोहस्स' अमोहस्य 'असरीरस्प' अशरीरस्य शरीररहितस्य 'ताओ सरीराओ विषमुक्कस्स' तस्मात् पूर्वपाप्तात् शरीरात विषमुक्तस्य 'नो एवं पन्नायई' न एवं पज्ञायते किं तत् यत् न प्रज्ञायते.? तत्राइ-तं जहा' तथा 'कालत्ते वा जाव रुकवत्ते वा' कालत्वं वा यावन् रूक्षत्वचा, अत्र यावत्सदेन कालत्वरूक्षत्वयो. मधावानां कात्यातिरिक्त वर्ग वतुष्टय-गन्धद्वयतिक्तादिरसपश्चक-कर्कशादि. स्पर्श पप्तकरूपाणां पदानां संग्रहो भवति इति । स्वभावतो वर्णादिरहितस्य जीवस्य वर्गादिमत्त्वं केलिनापि न प्रज्ञायते अपवाद वर्गादीनामसत्वं च मुक्तस्य कर्महो चुका है, 'असरीरस्स' शरीर रहित हो चुका है। एवं 'ताओ सी. राभा विष्पमुक्कस्स' पूर्व प्राप्त शरीर से जो सर्वथा रिक्त हो चुका है ऐसे उस जीव के विषय में 'नो एवं पन्नायई' सामान्यजन द्वारा भी ऐसा नहीं कहाजाता है । 'त जहा' जैसे कि-'कालत वा जाव लुक्खतेवा' यह जीव कृष्ण गुणवाला है, यावत् रूक्ष गुणवाला है। यहां यावत्पद से कालत्व एवं रूक्षत्व इन गुणों के मध्यगत चार वर्ण, दो गंध, तिक्तादि पांच रस
और कर्कश आदि सात स्पर्श इनका संग्नह हुआ है । तात्पर्य इस पाठ का ऐसा है कि स्वभाव से वर्गादि रहित जीव में वर्णादि से युक्तता केवली द्वारा भी नहीं कही गई है। क्योंकि उसमें वर्णादिमत्त्व का अभाव है। वर्णादिमत्व के अभाव का कारण उसमें कर्मबन्ध होने का अभाव है। कर्मवन्ध होने के अभाव का कारण वहां कर्मबन्ध के हेतुरागादिकों का विप्प मुक्कस्स" ५७प्रात ४२ शरीरथी २ सया छूट गयो छे. मेवात
न विषयमा "नो एवं पण्णायइ" सामान्य नाथी ५ युही तु नथी. "तं जहा" रेम “कालत्ते वा जाव रुक खत्ते वा” मा १४५ शुश्वा। છે. યાવત રૂક્ષગુણવાળે છે. અહિયાં યાત્પદથી કાલવ રુક્ષત્વ એ ગુણોની મધ્યમાં રહેલા ચાર વર્ણ, બે ગંધ, તિક્ત વિગેરે પાંચ રસ, કર્કશ વિગેરે અને આઠ સ્પેશ એ બધાનો સંગ્રહ થયે છે. કહેવાને ભાવ એ છે કે સ્વભાવથી જ વર્ણ વિગેરેથી રહિત જીવમાં વર્ણ વિગેરેથી યુક્તતા કેવલીઓએ પણ કહી નથી. કેમકે જીવમાં વર્ણાદિપણાનો અભાવ છે વર્ણાદિપણાના અભાવનું કારણ જીવમાં કર્મ બંધ હોવાનો અભાવ છે. તેમાં કર્મ બંધને અભાવ હોવાનું
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨