Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमैयचन्द्रिका टीका श०१७ उ०२ सु० ४ जीवस्य रूप्यरूपित्वनिरूपणम् ४१२ बन्ध हेत्व मावेन कर्मा भावात् कर्मा भावे च कर्म ननितशीरादेरभावादेव वर्मादीनामभाव इति नारूपी भूल्ला रूपी भवतीतिभावः । ‘से तेणटेणं जाव चिद्वित्तए वा' तत्तेनार्थेन यावत् स्थातुं वा अ यावत्पदेन 'गोषमा एवं वुबह से जीवे' इत्यारम्भ 'विउवित्ताणं' इत्यतस्प ग्रह गम् तथा च देवादि जीवः कर्मसद्भावात् रूपी सन् अरूपी भूत्वा स्थातुं न समर्थः। तथा अरूपी सत् कर्मरहितत्वात् रूपी भूत्वा स्थातुं न समर्थः, इति सूत्रद्वपस्या शयः । 'सेवं भंते ! सेव भंते ! त्ति' तदेव भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति । हे भान ! यद् देवानुपियेण कथितम् तत्
हो चुका हैं, 'अवेयम्स' वेद रहित हो चुका है, 'अमोहस्स' मोह रहित अभाव है। अतः कर्म के अभाव में कर्मजनित जो शरीरादिक हैं उनका उसमें सत्त्व नहीं होने से वर्णादिकों का अभाव है। इसलिये वह अरूपी होकर रूपी नहीं होता है। 'से तेणटेणं जाव चिहित्तए वा' यहां यावत्पद से 'गोयमा ! एवं बुच्चह से जीवे इस पाठ से लेकर विउ. वित्ता णं' यहाँ तक का पाठ गृहीत हुआ है । तथा च देवादि जीव कर्म के सद्भाव से रूपी होता हुआ अरूपी रूप से होकर नहीं रह सकता है। तथा अरूपी होता हुआ जीव कर्म रहित हो जाने के कारण रूपी रूप से होकर नहीं रह सकता है । यह सूत्र द्वय का आशय है । 'सेवं भंते !
यूट्यो छ. "अमोहस्स" मोड हित ५७ यूयो छ. अने "ताओ सरीराओ કારણ ત્યાં કર્મ બંધના કારણરૂપ રાગાદિને અભાવ છે. જેથી કર્મના અભાવમાં કર્મથી થયેલ જે શરીર વિગેરે છે. તેનું જીવમાં સત્વ નહિ હેવાથી વર્ણાદિકને અભાવ છે. તેથી જીવ અરૂપી થઈને રૂપી 25 शत नथी. “से तेणटेणं जाव चिद्वित्तए वा" मडियां यावत् पया "गोयमा एवं वुचह से जीवे" मे ५४थी as “विउवित्ता ण" माह સુધીના પાઠને સંગ્રહ થયે છે. દેવ વિગેરેને જીવ કર્મના સદૂભાવથી રૂપી થઈને અરૂપી પણાથી રહી શકતું નથી તેમજ અરૂપી બનેલે જીવ કર્મ રહિત થઈ જવાના કારણે રૂપી બનીને રહી શક્તા નથી. આ પ્રમાણે भा मे सूत्रानो आशय छे. "सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति" मगवन् !
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨