Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
भगवतीसूत्रे पर भी स्मरण कर लेना चाहिये । अर्थात् मृषावाद में भी प्राणातिपात सम्बन्धी सष कथन जानना चाहिये । अतः प्राणातिपात के स्थान पर मृषावाद शब्द लगाकर वह प्रकरण मृषावाद के साथ संगत कर लेना चाहिये। 'एवं अदिन्नादाणेण वि' इसी प्रकार से अदत्तादान के सम्बन्ध में भी दण्डक कहलेना चाहिये । तथा 'एवं मेहुणेण वि 'प्राणातिपात के दण्डक के जैसा मैथुन के सम्बन्ध में भी दण्डक कहा गया है ऐसा जानना चाहिये । 'परिग्गहेण वि' परिग्रह में भी ऐसा विचार कर लेना चाहिये । 'एवं एए पंच दंडगा' इस प्रकार से ये पांच दण्डक होते हैं। पांच पाप सम्बन्धी सो ये पांच दण्ड क सामान्यरूप से कहे गये हैं। __ अब सूत्रकार समय देश प्रदेश को लेकर पांच पांच दण्डक कहते है। इस पर गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है-'जं समयं णं भंते ! जीवाणं पागाइवाएणं किरिया कजह यहां 'जं समय' यह सप्तमी के अर्थ में द्वितीया विभक्ति हुई है-अतः जिस समय में हे भदन्त ! जीवों को प्रागातिपात से क्रिया होती है। 'सा कि पुट्टा कब्रह, अपुट्ठा कज्जई' वह क्रिया क्या उनके आत्मप्रदेशों के साथ स्पृष्ट होती है या अस्पृष्ट होती है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं । 'एवं तहेव जाव वत्तवासिया' हे गौतम ! કરીને તે સઘળું પ્રકરણ અહિયાં પણ યાદ કરી સમજી લેવું. અર્થાત્ મૃષાવાદમાં પણ પ્રાણાતિપાતના સંબંધમાં સઘળું કથન સમજવું. જેથી પ્રાણાતિ પાતના રથને મૃષાવાદ શબ્દને પ્રયોગ કરીને તે પ્રકરણ મૃષાવાદના समयमा anी . ' एवं अदिन्नादाणेण वि" मे४ रीत महत्ताहानना विषयमा ५५ ६३४ सभ७ वा. वी शत "एवं मेहुणेणवि" प्राणातिપાતના દંડકની માફક જ મૈિથુનના સંબંધમાં પણ દંડક કહેવામાં આવેલ છે, तम सभा'. "परिगहेणवि" परिश्रना सभा ५९ सवा ४ विद्यार समr “एवं एए पंच दंडा" २ रीते सामान्य ३५थी मा પાંચ દંડક કહેવામાં આવ્યા છે.
હવે સૂત્રકાર સમય, દેશ અને પ્રદેશને લઈને પાંચ પાંચ દંડકે કહે छ. मा विषयमा गौतम स्वाभीमे प्रभुने मेवु -"जं समयं णं भंते ! जीवाणे पाणाइवाएणं किरिया कज्जई'' अडियो "जं समय" से ઠેકાણે સપ્તમીના અર્થમાં દ્વિતીયા વિભક્તિ થઈ છે –જેથી જે સમયે જેને प्रामातिपातथा लिया थाय छे “सा कि पुदा काजइ अपुद्रा करजई" या તેના આત્મપ્રદેશની સાથે પ્રુષ્ટ થાય છે કે આપૃષ્ટ થાય છે? તેના उत्तरमा प्रभु ४ ४ -"एवं तहेव जाव पत्तध्वं सिया" गौतम!
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨