Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १७ उ०४ सू०१ प्राणातिपातादिक्रियानिरूपणम् ४६९ 'वत्तव्यं सिया' यहां तक जो विषय प्राणातिपात क्रिया की टीका में जैसा पहिले कहा गया है वही सब विषय कथन वहां तक का यहां पर भी ग्रहण कर लेना चाहिये अर्थात प्राणातिपात क्रिया की टीका में जो विषय 'वत्तव्य सिया' पद तक कथनीय कहा गया है वही सब विषय यहां पर भी कथनीय है ऐसा जानना चाहिये, और यह सब 'जाव वेमाणि याणं' एकेन्द्रिय जीव से लेकर वैमानिक पर्यन्त २४ दण्डकों में वैसा का वैसा ही समझना चाहिये । इस प्रकार सामान्य जीव प्रकरण में (यस्मिन् समये प्राणातिपातितक्रिया क्रियते सा स्पृष्टैव क्रियते, नो अस्पृष्टा) इत्यादि जैसा कहा है, वह सब वैमानिक पर्यन्त जीवप्रकरण में भी ग्रहण कर लेना चाहिये। 'एवं जाव परिग्गहेण' इसी प्रकार से जीव जीस समय में यावत्पद गृहीत मृषावाद द्वारा अदत्तादान द्वारा, मैथुन द्वारा, और परिग्रह द्वारा क्रिया करता है उस समय में वह क्रिया आत्मप्रदेशों से स्पृष्ट हुई ही वह करता है अस्पृष्ट हुई वह नहीं करता है इत्यादि सय प्रकरणान्त तक का प्रभु द्वारा कहा गया उत्तर यहां जानना चाहिये। 'एवं एए वि पंच दंडगा' इस प्रकार से समय को "वत्तव्यं सिया" मायां सुधाभ प्राणातिपात या विषयमा पडेखi ટીકામાં જે પ્રમાણે કહેવામાં આવ્યું છે, તે જ પ્રમાણે તે સઘળું કથન ત્યાં સુધીનું અહિયાં પણ સમજી લેવું જોઈએ અર્થાતુ પ્રાણાતિપાત ક્રિયાના ४थननी A.Hi 7 विषय “वत्तव्यं सिया" को ५६ सुधा पार्नु युं छे. એ એજ સઘળો વિષય અહિયાં પણ કહી લે તેમ સમજવું અને તે ४थन "जाव वेमाणियाण" सेटवे हैं मेन्द्रिय धी ने वैमानि સુધીના ચૌવીસ દંડકોમાં પણ તેવી જ રીતે સમજી લેવું આ शत सामान्य ना ५२i यस्मिन् समये प्राणातिपातिकि क्रिया क्रियते सा स्पृष्टैव क्रियते, नो अस्पृष्टा" याहि भ ४ छ તે સઘળું વૈમાનિક સુધીના જીવ પ્રકરણમાં પણ ગ્રહણ કરી લેવું જોઈએ. "एवं जाव परिमाणं" से रीते १२ समये भूषा-असत्य भाषा , અદત્તાદાન દ્વારા, મૈથુનથી અને પરિગ્રહથી ક્રિયા-કર્મ બંધ કરે છે, તે સમયે તે કિયા-કમબંધ આમપ્રદેશને સ્પષ્ટ થઈને જ તે કરે છે, અપૃષ્ટ થઈને તે કરતા નથી. વિગેરે પ્રકરણના અન્ત સુધી પ્રભુએ આપેલ सधणे उत्तर माडियां समन. "एवं एए वि पंच दंडगा” मा प्रार
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨