Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १७ ७०४ सू०१ प्राणातिपातादिक्रियानिरूपणम् ४६५ साथ एक क्षेत्रावगाहरूप से नहीं होता है ऐसा यह बन्ध नहीं होता है । ' एवं जहा पढ़मसए छट्ठद्देसए जाव णो अणाणुपुव्विकडा ति वक्तव्यं सिया' इस प्रकार से जैसा प्रथम शतक में छठे उद्देशे में 'अणाणुपुग्विकान्ति वक्तव्वं सिया' इस पाठ तक जो विषय इस संबन्ध में कहा गया है वह सब यहां ग्रहण कर लेना चाहिये। वहां 'जाब frostater' ऐसा पाठ है सो वहां आगत यावत् पद से यह विवक्षित पाठ यहां गृहीत हुआ है-'सा भंते किं ओगाढ़ा कज्जद्द अगोगाढा कज्जइ ? गोयमा ! ओगाढा कज्जह णो अणोगाढा कज्जद्द' यहां से लेकर 'नो अणाणुपुच्यिकड़ा ति वक्तव्यं सिया' यहां तक का सब पाठ गृहीत हुआ है। इस पाठ की व्याख्या प्रथम शतक के छटे उद्देशे में आगत द्वितीय सूत्र के ऊपर की गई मेरी प्रमेयचन्द्रिका नाम की टीका में देखना चाहिये । ' एवं जाय वेमाणियाणं' सामान्य जीव के विषय में प्राणातिपात से क्रिया होती है ऐसा जैसा कहा गया है उसी प्रकार से वैमानिक पर्यन्त २४ दण्ड़कों में जीव के विषय में प्राणातिपात से क्रिया होती है ऐसा जानना चाहिये | 'नवरं जीवाणं एगिंदियाण य निव्वाघाएणं छद्दिसिं' समुच्च નવા ઘડાની સાથે એક ક્ષેત્રાવગાહ રૂપથી હાતા નથી તેવીજ રીતે આત્મप्रदेशानी साथै आ अंध पशु ३५ होतो नथी. “एवं जहा पढमसए छदद्देस जाव णो अणाणुपुव्विकड़ात्ति वत्तव्वं खिया" मा रीते पडेला शतम्ना छट्टा उद्देशामां "अणाणुपुव्विकडाति वत्तव्वं सिया" आ पाठ सुधी ने प्रभाषेनु કથન આ વિષયના સંબંધમાં કરવામાં આવ્યુ છે. એ પ્રમાણેનું સઘળુ' કથન महि श्रषु री बेवु त्यां भागण "जाब निव्वाघाणं" मेवे पाठ छे. तेभां यावेस यावत् पहथी नाथे प्रभानो पाठ मडियां श्रड थयो छे. “सा भते ! कि' ओगाढा कज्जइ अणोगाढा कज्जइ गोयमा ! ओगाढा कज्जइ, णो अणोगाढा कज्जइ" मा पाथी बने "जो अणाणुपुव्विकडात्ति वत्तव्वं खिया" अहि सुधीना સઘળે! પાઠ ગ્રહણ કરી લેવા. આ પાઠની વ્યાખ્યા પહેલા શતકના છઠ્ઠા ઉદ્દેશામાં આવેલ ખીજા સૂત્ર ઉપરની મે' કરેલ પ્રમેયચદ્રિકા નામની ટીકામાં જોઇ बेवु. "एवं जाव वेमाणियाणं" सामान्य बना विषयभां प्रातिपातथी भ બંધ થાય છે. એવુ' જે કહેવામાં આવ્યુ છે. તેજ રીતે વૈમાનિક સુધીના ચાવીસે ઇ'ડકેામાંના જીવેાના વિષયમાં પ્રાણાતિપાતથી કનેા ખધ થાય છે. मे प्रभाचे सम बेवु " नवरं जीवाणं एगिदियाणय णिव्वाघाएणं छद्दिसि "
भ० ५९
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨