Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे इत्यर्थः । एवं जहा पढमसए विइयउदेसए दोवकुमाराणं वत्तब्धया तहेव' एवं यथा पथमशतके द्वितीयोदेशके द्वीपकुमाराणां वक्तव्यता तथैव द्वीपकुमारस्थाहारादिविषये येनैव रूपेण वक्तव्यता कथिता तथैव तेनैव प्रकारेण अत्रापि वक्तध्या इति, कियर्यन्तं तत्राह-'जाव' इत्यादि। 'जाव नो समाहारा नो समुस्सासनिस्सासा' यावत् नो समाहारा नो समोच्छ्वासनिःश्वासाः उच्छ्वासनिःश्वसाधिकारपर्यन्तं प्रथमशतकीयद्वितीयोदेशकवृत्तान्तोऽत्र वाच्य इत्यर्थः। 'दीवकुमाराणां भंते ! कइलेस्साओ पन्नत्ताओ' द्वीपकुमाराणां भदन्त ! कति लेश्याः प्रज्ञताः । भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि। 'गोयमा !' हे गौतम ! 'चत्तारि लेस्साओ पन्नत्तानो' चतस्रः लेश्याः प्रज्ञप्ताः 'तं जहा' तद्यथा 'कण्हलेस्सा जाव हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। अर्थात् सब दीपकुमारों का आहार, एवं उच्छ्वास निःश्वास समान नहीं होता है। एवं जहा पढमसए विइय उद्देसए दीवकुमाराणं वत्तव्चया तहेव जाव समाउया समुस्सासनिस्सासा' इस विषय में जैसा कथन प्रथमशतक के द्वितीय उद्देशक में दीपकुमारों की वक्तव्यता में पहिले कहा जा चुका है उसी प्रकार का कथन यहां पर भी इस विषय में कर लेना चाहिये। यावत् वे न समान आहारवाले होते हैं और न समान उच्छ्वास निःश्वासवाले होते हैं। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'दीवकुमाराणं भंते! कालेस्साओ पनत्ताओ' हे भदन्त ! द्वीपकुमारों के कितनी लेश्याएँ कही गई है ? उत्तर में प्रभु ने कहा है कि 'गोयमा' हे गौतम ! 'चत्तारिलेस्सामी पण्णताओ' द्वीपकुमारों के चार लेश्याएँ कही गई हैं । 'तं साभार ४ छ है “णो इणद्वे समडे" ॐ गौतम Aथ समथ नथी અર્થાત્ બધા દ્વીપકુમારને આહાર અને ઉદ્ઘાસ નિઃશ્વાસ સરખા હોતા तथी "एवं जहा पढमसए विइए उद्देसए दीवकुमाराणं वत्तव्यता तहेव" मा विषयमा २ थन पता शतना भी देशमा बीमाराना કથનમાં પહેલા કહેવામાં આવ્યું છે એજ રીતનું કથન આ વિષયમાં અહિં પણ સમજી લેવું યાવત્ તે સમાન આહારવાળા હોતા નથી તેમજ સમાન ઉછુવાસ નિ:શ્વાસવાળા પણ હોતા નથી. હવે ગૌતમ સ્વામી પ્રભુને એવું
छ छ ?---"दीवकुमाराणं भंते कइलेस्साओ पण्णताओ" भगवन् द्वा५. કુમારને કેટલી વેશ્યાઓ કહી છે? તેના ઉત્તરમાં પ્રભુએ કહ્યું છે કેगोयमा ! ३ गीतम "चत्तारि लेस्साओ पण्णताओ" बीमार मा यार
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨