Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे स्थिताः अपि तु अधर्म एव स्थिता इति । 'पंचिंदियतिरिक्खनोणियाणं पुच्छ।' पश्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां पृच्छा पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः धर्मे वा अधर्म वा धर्माधर्म वा स्थिताः ? इति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा!' हे गौतम ! 'पविदियतिरिकावजोणिया' पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः 'नो धम्मे ठिया' नो धर्मे स्थिताः विरतेरमावात् 'अधम्मे ठिमी' अधर्मे स्थिताः विरतिरहितत्वात् 'धम्माधम्मे वि ठिया' धर्माधर्मेऽपि स्थिताः श्रावव्रतधारिवात् । 'मणुस्सा जहा जीवा' मनुष्याः यथा जीवाः, मनुष्यविषये सामान्य जीववत् व्याख्या ज्ञातव्याः मनुष्याः धर्मेऽपि अधर्मेऽपि धर्माध में ऽपि स्थिताः में ही स्थित कहे गये हैं। 'पचिदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा' इम सूत्र द्वारा गौतम ने प्रभु से पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों के धर्माधर्म आदि में होने के सम्बन्ध में पूछा है-हे भदन्त ! जो पंचेन्द्रिय तिर्यश्च हैं वे क्या धर्म में स्थित हैं ? या अधर्म में स्थित है ? या धर्माधर्म में स्थित हैं ? इसके उत्तर में प्रभु ने उन से कहा-'गोयमा ! पंचिंदियतिरिक्खजोणिया नो धम्मे ठिया' हे गौतम ! पंचेन्द्रिय तिर्यश्च सर्व विरतिरूप धर्म में स्थित नहीं हैं। किन्तु 'अधम्मे ठिया, धम्माधम्मे विठिया' वे अविरतिरूप अधर्म में स्थित हैं और देश विरतिरूप धर्माधर्म में भी स्थित हैं । क्योंकि इनमें श्रावकव्रतों को धारण करने की योग्यता शास्त्रों में कही गई हैं । 'मणुस्सा जहा जीवा' मनुष्यों के सम्बन्ध में धर्म एवं धर्माधर्म में स्थित होने का कथन सामान्य जीव के विषय में किये गये कथन के जैसा जानना चाहिये। इस प्रकार मनुष्य धर्म में भी
હવે ગૌતમસ્વામી પંચેન્દ્રિય તિર્થના વિષયમાં પ્રભુને પૂછે છે કે – 'पंविदियतिरिक्ख जोणियाणं पुच्छा' हे सगवान् रे । ५'यन्द्रिय तिय"य છે તેઓ ધર્મમાં સ્થિત છે ? કે અધર્મમાં સ્થિત છે? હે ધર્માધર્મમાં સ્થિત छ ? तना उत्तरमा प्रभु ४3 छ -'गोयमा पंचि दियतिरिक्खजोणिया नो धम्मे ठिया' है गौतम पन्द्रिय तिय य । स विति३५ मा स्थित डाता नयी ५२'तु 'अधम्मे ठिया धम्माधम्मे वि ठिया' ते विति३५ અધર્મમાં સ્થિત છે. અને દેશ વિરતિરૂપ ધર્માધર્મમાં પણ સ્થિત છે. કેમકે તેઓમાં શ્રાવકના વ્રતને ધારણ કરવાની યોગ્યતા હોવાનું શામાં કહ્યું छ. 'मणुस्सा जहा जीवा' भनुष्य। धर्म, अधम, भने धर्माधम भां स्थित હોવાનું કથન સામાન્ય જીવોના વિષયમાં કહેલ કથન પ્રમાણે સમજવું. એ રીતે મનુષ્ય ધર્મમાં પણ સ્થિત છે, અધર્મમાં પણ સ્થિત છે, અને ધમધર્મમાં
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨