Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
४०८
भगवतीसूत्रे घटकलशवत् यो घटः स एव कलशः, शब्दभेदेऽपि अर्थस्यात्यन्त भेदाभावात् । जाव अणगारोवोगे वट्टमाणस्स' यावत् अनाकारोपयोगे वर्तमानस्य देहिनः अत्र यावत्पदेन औम्पत्तिकादिबुद्धित आरभ्य साकारोपयोगपर्यन्तस्य सम्पूर्णस्य प्रश्नवाक्यास्यात्रोत्तरवाक्येऽपि संग्रहः करणीयः 'सच्चेव जीवे सच्चेव जीशया' स एव जीवः स एव जीवात्मा ॥ मू० ३ ॥
अथ जीवविषये रूप रूपिवक्तव्यतामाह- देवे णं भंते ।' इत्यादि।
मूलम्-देवेभंते !महडिए जाव महासोक्खे पुवामेव रूवी भवित्ता पभू अरूवि विउवित्ताणं चिट्टित्तए ? गोयमा! णो इणट्रे समटे से केणट्रेणं भंते ! एवं वुच्चइ देवेणं जाव नो पभू अरूविं विउवित्ता णं चिट्रित्तए ? गोयमा! अहमेयं जाणामि अहमेयं पासामि अहमेयं बुज्झामि अहमेयं अभिसमन्नागच्छामि मए एयं नायं, मए एयं दिटुं, मए एयं बुद्धं, मए एयं अभिऐसा किया जावेगा । तब इस व्याख्या में प्रथम जीवपद जोवस्वरूप का बोधक और द्वितीय जीवपद जीव अर्थ का बोधक होगा, स्वरूप और स्वरूपवान में अत्यंत भेद नहीं होता है। यदि इनमें अत्यंत भेद ही स्वीकार किया जावेगा तो स्वरूपवान् पदार्थ निःस्वरूप हो जावेगा, शब्द भेद से वस्तु में आत्यन्तिक भेद नहीं होता है। जैसे कि घट और कलश मे शाब्दिक भेद होने पर भी आत्यन्तिक भेद नहीं होता है । जो घट है वही कलश है और जो कलश है वही घट है। 'जाव अगागारोवोगे वट्टमाणस्स' इसी प्रकार औत्पत्तिक्यादि बुद्धि से लेकर साकारोपयोगपर्यन्त सम्पूर्ण प्रश्नवाक्य का यहाँ उत्तर वाक्य में भी संग्रह कर लेनाचाहिये। 'सच्चेव जीवे सच्चेव जीवाया' वही जीव है वही जीवात्मा है ।। सू० ३॥ ભેદ હો નથી. તેમાં અત્યંત ભેદ સ્વીકારવામાં ન આવે તે સ્વરૂપવાન પદાર્થ નિઃસ્વરૂપ થઈ જશે. શબ્દના ભેદથી વસ્તુમાં આત્યંતિક ભેદ થત નથી. જેમ કે ઘટ અને કલશમાં શાબ્દિક ભેદ હોવા છતાં પણ આત્યંતિક ભેદ હોતો નથી. જે ઘટ છે. તેજ કલશ છે. અને જે કલશ છે તે જ घट छे. “जाव अणागारोवओगे वट्टमाणस्स" मेरी शते मोत्पत्तिही भुद्धिथी લઈને સાકારે પગ પર્યત સંપૂર્ણ પ્રશ્ન વાક્યને આ ઉત્તર વાક્યમાં ५५ सघड a “सच्चेव जीवे सच्चेव जीवाया" ते ७१ सने તેજ જીવાત્મા છે. | સૂત્ર ૩ છે
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨