Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमैन्द्रिका टीका श० १६ उ० १ सू० १ वैरोचनेन्द्र बलिवक्तव्यता ३०७ afones 'दीवसमुदे वीइवइत्ता अरुगवरस्त दीवस्स बाहिरिल्लाओ वेइयंताओ अरुगोदयं समुदं' इत्यन्तस्य ग्रहणं कर्तव्यम् 'ओगाहिता' अवगाह्य अन्तः प्रविश्य इत्यर्थः 'एस्थ णं बळिस्स बहरोयदिस्त बहरोयणरन्नो' अत्र खलु बलेवे रोचनेन्द्रस्य वैरोचनराजस्य 'रुपगिंदे नाम उप्पायपव्वर पन्नते' रुचकेन्द्रो नामा उपपातपर्वतः प्रज्ञः स कियत्ममाण ? इति तत् परिमाणमाह- 'सत्तरस एकवीसे जोयस' सप्तदशैकविंशतिर्यो जनशतानि एकविंशत्युत्तरसप्तदशशतयोजनपरिमितः 'उडूं उच्चतेणं' ऊर्ध्वमुच्चत्वेन ऊर्ध्वत्वेन उच्चो रुचकेन्द्र नामक उत्पात पर्वत इत्यर्थः एवं प्रमाणं' एवम् ईदृशप्रमाणकम् ' जहेव तिगिच्छकूडस्स' यथैव
के अष्टम उद्देशक में कथित 'दीवसमुद्दे वीवहत्ता अरुणवरस्स दीवस्स बाहिरिल्लाओ वेइयंताओ अरुणोदेयं समुद्द' इस पाठ का ग्रहण हुआ है - इसका तात्पर्य ऐसा है कि जंबूद्वीप के मंदर पर्वत की उत्तर दिशा में तिरछे असंख्यात द्वीप समु दों को लांघने के बाद अरुणवर द्वीप आता है । इस द्वीप की बाह्य वेदिकान्त से आगे बढने पर अरुणोदय नामका समुद्र आता है । इस अरुणोदय समुद्र में ४२ हजार योजन जाने के बाद बलिका उपातपर्वत आता है। यही बात 'एत्थ णं बलिस्स वइरोयणिदस बहरोणरन्नो रुयगिंदे नाम उपायपव्वए पन्नते' इस सूत्र द्वारा प्रकट की गई है। इसका कितना प्रमाण है ? ता इसके लिये कहा गया है कि 'सतरस एकवीसे जोयणसए उउच्चतेणं' यह रुचकेन्द्र नाम का उत्पात पर्वत १७२१ योजन ऊँचा है । इस प्रकार ' जहेब तिगि
ઉત્પાતપર્યંત આવે છે. અહિયાં યાવત્ શબ્દથી ખીજા શતકના આઠમાં उद्देशाभां अडेस “दीवस मुद्दे वीइवइत्ता अरुणवरस्थ दीवस्स बाहिरिल्लाओ वेइयंताओ अरुणोदयं समुद्दे” मा पाउने संग्रह थयो छे. तेनेो अर्थ मा प्रभा છે-જમૂદ્રીપના મંદર (મેરુ) પત્તની ઉત્તર દિશામાં તિરછા અસખ્યાત દ્વીપ સમુદ્રોને ઉદ્ભયા પછી અરૂણવર દ્વીપ આવે છે. આ દ્વીપની બહારની વૈદિકાન્તથી આગળ વધતાં અરુણુાદય નામને સમુદ્ર આવે છે. આ અરુÌદય સમુદ્રમાં ખેડતાળીસ ૪૨ હજાર ચૈાજન નીચે ઉતરતાં ખિલના ઉત્પાત પત यावे छे. येन वात " एत्थ णं वलिस्स वइरोयदिस्स बइरोयणरन्नो दर्यार्गिदे मं उपाय पणत्ते" मा सूत्रथी मतावी छे, भानु प्रमाणु उटलुं छे ? ये मतावतां मृह्युं छेडे 'सत्तरस एकत्री से जोयणसए उडूढं उच्चत्तेणं' भारुय४ નામના ઉત્પાત પર્વત ૧૭૨૧ સત્તરસે એકવીસ યેાજન ઊંચા છે એવી રીતે " जहेव तिगिच्छकूडस्स” खानु प्रभा यमरना तिभिच्छछूट नामना त्यात
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨