Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेय चन्द्रिका टीका श० १६ २८६ सू०२ स्वप्नस्य याथार्थ्यायाथार्थ्यनि० २०९ सति 'कइ महासुविणे' कति महास्वमान्- महाफलम्चकत्रिशतस्वममध्यात् कतमान् महास्वमान् 'पासित्ता णं पडिबुझंति' दृष्ट्वा खलु प्रतिबुद्धयन्ते ? भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'मोयमा !' हे गौतम ! 'तित्थगरमायरो णं' तीर्थकरमातरः खलु 'तित्थगरंसि गम्भं वक्कममाणंसि तीर्थकरे गर्भ व्युत्क्रामति-स्वजनन्या उदरे तीर्थकरे समागते सतीत्यर्थः 'एएसि तीसाए महासुविणाणं' एतेषां त्रिंशन्महास्वमानां मध्ये इमे चोदस महासुविणे पासित्ता गं पडिबुझंति' इमान् वक्ष्यमाणान् चतुर्दशमहास्वमान् दृष्ट्वा खलु प्रतिबुद्धयन्ते । महाफलसूचकान चतुदशमहास्वम नेव परिगण यन्नाह-'तं जहा' इलादि । 'तं जहा' तथा 'गय-उसम -सीह अभिसेय जाब लिहिं च' गनषभसिंहाभिषेक. यावत् शिखिनं च अत्र यावस्पदेन पुष्पमालायुगाल-चद्रपूर्य ध्वज-कुम्भ पद्म-सरोवर-क्षीर-समुद्रविमान माताएँ जब वे उनके गर्भ में आ जाते हैं । 'कह महासुविणे पासित्ता' तब ३० महास्वप्नों में से कितने महा स्वप्नों को देखकर 'णं पडिबुज्झति' जगती हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम ! 'नित्थगरमायरोण तिस्थगरंसि गभं वक्कममाणसि' तीर्थकर की माताएँ जब तीर्थकर उनके गर्भ में अवतरित हो जाते हैं उस समय में 'एएसि तीसाए महाविणाणं इमे चोदस महासुविणे पासित्ता णं पडिझंति' इन ३० महास्वप्नों में से इन चौदह महास्वप्नों को देखकर प्रतियुद्ध हो जाती हैं-जग जाती हैं-३१४ महास्वप्न इस प्रकार से हैं-'गय-उसभ-सीह-अभिसेघ जाव सिंहिं च' गज, वृषभ, सिंह, अभिषेक, यावत्पद ग्राह्य-पुष्पमालायुगल, चन्द्र, सूर्य, ध्वज, कुम्भ, पद्मसरोवर, क्षीर समुद्र, विमान और रत्नराशि 'कइ महासुविणं पासित्ता' की भड। २१ माना । १ . 'णं पडिवुज्झति' तयानी माता ansli arय छ १ तेन। उत्तरमा प्रभु ४ छ है 'गोयमा' गौतम ! 'तित्थगरमायरो णं तित्थगरसि गलन वकंममाणंसि' तिय ४२नी माता. २२ तिथ ४२। तग। लभा मा छे त्यारे 'एएसि तीसाए महासुविणाणं इमे चोहसमहासुविणे पासित्ता णं पडिबुज्झति' मा ત્રીસ પ્રકારના મહાસ્વને પૈકી ચૌદ મહા સ્વપ્નોને જોઈને પ્રતિબદ્ધ થાય छ. अर्थात् otall anय छ ते योद महासाने। 241 प्रमाणे छ. 'गय-उसभ सीह अभिसेय जाव लिहिच' (१) मा, (डी) (२) वृष (16) (3) सिड (४) अभिषे माया यावत् ५४थी (५) ५०५मासा युगदा (६) द्र (७) सूर्य (८) ४qan (6) से (१०) ५२२१२ (मनोवाणु ता१) (११)
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨