Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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____मगवतीमत्र समये 'सबके देविंदे देवराया बज्नपाणी' शक्रो देवेन्द्रो देवराजो बज्रपाणिः, 'एवं जहेव बितिए उद्देसए तहेव' एवं यथैव द्वितीयोद्देशके तथैव अत्रैव शतके इदमीयद्वितीयोद्देशके यथा शक्रस्य विकुर्वणां विमानानि वर्णनमुपवर्णितं तथैव सर्वमपि प्रकरणमत्र विज्ञेयम् 'दिव्वेणं जाणविमाणेणं आगो' दिव्येन यानविमानेन आमतः दिव्यम्-अतिविलक्षणं च तद् यानविमानमिति दिव्यंयानविमानं तादृशं विमानमारुह्य भगवत्समीपमागतः 'जाव जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उगच्छई' यावद् यत्रैव श्रमणो भगवान् महावीरस्तत्रैव उपागच्छति, अत्र याय. पदेन 'उवागच्छित्ता' इत्यस्य संग्रहो भवति उपागत्य 'जाव नमंसित्ता एवं यहाँ ग्रहण हुआ है "तेणं कालेणं तेणं समएणं" उस काल और उस समय में जब कि परिषदा मौजूद थी "सक्के देविंदे देवराया वज्जपाणि" वज्रपाणि वाला देवेन्द्र देवराज, शक्र उनके पास आया "एवं जहेव बितिए उद्देसए तहेव" इसी सोलहवें शतक के दूसरे उद्देशक में जैसा शक के संबन्ध में विकुर्वणा विमान आदि का वर्णन किया गया है वही सब वर्णन यहां पर भी कर लेना चाहिये "दिव्वेण जाणविमाणेणं आगओ" देवेन्द्र देवराज शक्र उनके पास दिव्य यान विमान पर चढकर आया वह विमान अति श्लक्षण था यह बात दिव्य पद से प्रकट की गई है । "जाव जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छह" इस प्रकार वह शक जहां श्रमण भगवान महावीर विराजमान थे-वहां पर आ पहुंचा, यहां यावत्पद से "उवागच्छित्ता" इस पद का संग्रह हुआ है। वहां आकरके 'जाव नमंसित्ता एवं वयासी' उसने छ. " तेणं कालेणं तेणं समएणं" ते जे मन त समये “ सक्के देविंदे देवराया वज्जपाणि" ना साथमा छे. मेवा हेवेन्द्र १२१ ४
तमनी पासे मा०ये.. “ एवं जदेव बितिए उद्देसए तहेव" २वी शत આ સેલમાં શતકના બીજા ઉદ્દેશામાં શકના સંબંધમાં “વિકુવા “વિમાન” વિગેરેનું વર્ણન કરવામાં આવ્યું છે. તેવી રીતનું સઘળું વર્ણન અહિં સમજી बे. “दिव्वेण जाणविमाणेणं आगओ" देवेन्द्र ३६२० (5न्द्र) દિવ્ય યાનવિમાનમાં ચઢીને પ્રભુની પાસે આવ્યે આ વિમાન અત્યંત विलक्षण तु मे पात ६०य' से ५४थी प्रगट थाय छे. "जाव जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ” मा शत ४ (न्द्र) यां શ્રમણ ભગવાન્ મહાવીર વીરાજમાન હતા ત્યાં પહોંચે અહિં યાવત પદથી "उवागच्छित्ता" में पहने। सब थये। छ त्यो भावीन. "जाव नमंसित्ता
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨