Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१६ उ०५ सू०३ गङ्गदत्तदेवस्यागमनादिनिरूपणम् १५७ एषोऽर्थः 'परिणममाणाः पुद्गलाः परिणताः, नो परिणताः परिणमन्तीति कृत्वा परिणता एवं नो अपरिणताः, इति सर्वथैव सत्यम् इति । 'तए णं से गंगदत्ते देवे' ततः खलु स गङ्गदत्तो देवः ‘समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं एयमढे सोच्चा निसम्म' श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य अन्ति के-समीपे एतमर्थं श्रुत्वा निशम्य हृदयेऽवधार्थ 'हट्टनुढ०' हृष्टतुष्टचित्तानन्दितः, हर्षवविसर्पहृदयः सन् 'समणं भगवं महावीरं' श्रमणं भगवन्तं महावीरं 'वंदइ नमसइ' वन्दते नमस्यति 'वंदिचा नमंसित्ता' वन्दित्वा नमस्यित्वा 'नच्चासन्ने जाव पज्जुवासई' नात्यासन्ने यावत् पर्युपास्ते, यावत्पदेन नातिदूरे 'मुस्लसमाणे णमंसमाणे पुद्गलाः परिणताः, नो अपरिणताः परिणमन्तीति कृत्वा परिणता एव नो अपरिणता'। 'तए णं से गंगदत्ते देवे' इसके बाद वह गंगदत्तदेव 'समणस्स भगवभो महावीरस्स अंतियं एयम सोच्चा निसम्म हदुतुहे' 'श्रमण भगवान् से इस अपने कथन की पुष्टि की गई सुनकर बहुत अधिक खुश हुआ-संतुष्ट चित्त हुआ-हर्ष के वश से उसका हृदय हर्षित हो गया । 'समण भगवं महावीर वंदइ नमसइ' उसने उसी समय श्रमण भगवान महावीर को वन्दना की नमस्कार किया 'वंदित्ता नमंसित्ता नच्चासन्ने जाव पज्जुवासई' 'वन्दना नमस्कार कर फिर वह प्रभु के समक्ष अपने उचित स्थान पर बैठ गया-वह स्थान प्रभु से न अधिक दूर था और न उनके अधिक पास में ही था-वहां बैठकर
या छे थे मातi प्रभु ४३ छ, “परिणममाणाः पुद्गलाः परिणताःनो अपरिणताः परिणमंतीति कृत्वा परिणता एव नो अपरिणता" परिणाम पामता पुद परिणत. ते अपरियत नथी “ परिणमंति" मे लियापहथी थdi परिणभन्थी त परिणत १ ४उपाय छे. अपरिगुत अqidi नथी. “ तए णं से गंगदत्ते देवे" ते पछी त महत्त हे “समणस्स भगवश्री महावीरस्स अंतियं एयम8 सोचा निसम्म हद्वत" श्रम मावान महावीर प्रभु द्वारा પિતાના કથનનું સમર્થન કરવામાં આવ્યું તે સાંભળીને ઘણેજ ખુશ થયે પ્રસન્નચિત્ત થયે અને હર્ષના ઉત્કર્ષથી તેનું હદય પ્રફુલિત થઈ ગયું "समण भगवं महावीरं वंदइ नमसइ" ते वे ते४ समये श्रम सगवान महावीर प्रसुने ना ४२१ नभ२४२ . " वंदित्ता नमंसित्ता नचासन्ने जाव पज्जुवासइ" ना नभ२४२ ४ीने पछी त देव प्रसुनी पासे पाताना ઉચિત સ્થાન પર બેસી ગયા તે સ્થાન પ્રભુથી બહુ દૂર ન હતું અને બહુ નજીક પણ ન હતું ત્યાં બેસીને પ્રભુની પયું પાસના કરી (સેવા કરી)
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨