Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध orterrore...xcxxxsextortoon..rerrorrorse.verter0000000.. शब्द रख दिया है परन्तु टीकाकार अभयदेव सूरि ने इसकी टीका में सिर्फ 'भिक्खू' शब्द की 'भिक्षु' संस्कृत छाया कर उसी का अर्थ दिया है यथा - इसकी टीका इस प्रकार दी है
"स भिक्षुर्गच्छनिर्गतो जिनकल्पिकादिर्गृहपतिकुलं प्रवेष्टुकामः"
अर्थ - "वह साधु जिनकल्पी आदि गृहस्थ के घर में प्रवेश करने की इच्छा रखता हुआ" इत्यादि। - इससे यह स्पष्ट होता है कि यहाँ 'भिक्खुणी' शब्द नहीं होना चाहिए अतः इस प्रति के मूल में 'वा भिक्खुणी वा' शब्द नहीं रखा है।
टीका में आये हुए "जिनकल्पिकादि" शब्द से स्थविरकल्पी साधु साध्वियों के लिए भी इस सूत्र का विधान समझा जाता है। नजदीक में रहे हुए ग्रामादि में ग्लान आदि साधुओं को संभाल कर पुनः आना हो, ऐसे स्थिति में सभी भण्डोपकरण लिये बिना प्रामानुग्राम विचरण की विधि समझी जा सकती है। बहुश्रुत गुरु भगवन्तों की धारणा भी ऐसी ही है। - से भिक्खू वा भिक्खुणी वा से जाई पुण कुलाई जाणिज्जा तं जहा - खत्तियाण वा, राईण वा, कुराईण वा, रायपेसियाण वा, रायवंसट्ठियाण वा, अंतो वा, बाहिं वा, गच्छंताण वा, संणिविट्ठाण वा, णिमंतेमाणाण वा, अणिमंतेमाणाण वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा लाभे संते णो पडिग्गाहिज्जा त्ति बेमि॥२१॥ ___ कठिन शब्दार्थ - खत्तियाण - क्षत्रियों के कुल, राईण - राजाओं के कुल, कुराईणकुराजाओं के कुल, रायपेसियाण - राज प्रेष्यों के कुल, रायसट्ठियाण - राजवंश के कुल, अंतो- अंदर, वा - अथवा, बाहिं - बाहर, गच्छंताण - जाते हुए संणिविट्ठाण - बैठे हुए, णिमंतेमाणाण- निमंत्रण करते हुए, अणिमंतेमाणाण - आमंत्रण नहीं करते हुए।
भावार्थ - साधु या साध्वी चक्रवर्ती आदि क्षत्रियों, राजाओं, ठाकुर, सामंतों आदि, दंडपाशिक आदि राजवंशीय कुलों से जो भीतर या बाहर जाते हुए, खडे या बैठे हुए निमंत्रण किये जाने पर अथवा निमंत्रण न किये जाने पर वहाँ से प्राप्त होने वाले आहार आदि को साधु ग्रहण न करे। ऐसा मैं कहता हूँ।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में सूत्रकार ने कुछ ऐसे कुलों का निर्देश किया है जहाँ साधु साध्वियों को भिक्षा के लिये नहीं जाना चाहिये। राज भवन एवं राजमहल आदि में लोगों
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