Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अध्ययन ३ उद्देशक ३
१७१ .........................................................
भावार्थ - साधु अथवा साध्वी आचार्य उपाध्याय या प्रवृत्तिमी के साथ विहार करते हुए मार्ग में यदि कोई प्रातिपथिक इस प्रकार पूछे कि हे आयुष्मन् श्रमण! तुम कौन हो? कहाँ से आ रहे हो? और कहाँ जा रहे हो (जाओगे)? तो आचार्य या उपाध्याय जो साथ में हैं वे सामान्य या विशेष रूप से उत्तर देंवेगे, जब वे उत्तर देते हों तो साधु को बीच में नहीं बोलना चाहिये। इस प्रकार आचार्य, उपाध्याय या अपने से बड़े रत्नाधिक के साथ यतना पूर्वक विहार चर्या में प्रवृत्त रहे। __से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहाराइणियं गामाणुगामं दूइज्जमाणे णो राइणियस्स हत्थेणं हत्थं जाव अणासायमाणे तओ संजयामेव अहाराइणियं गामाणुगामं दूइज्जिज्जा॥ ... भावार्थ - साधु अथवा साध्वी रत्नाधिक (अपने से दीक्षा में बड़े) साधु साध्वी के साथ ग्रामानुग्राम विहार करता हुआ रत्नाधिक के हाथ को अपने हाथ से स्पर्श नहीं करे यावत् किसी भी प्रकार की आशातना नहीं करता हुआ यतना पूर्वक विचरे।
. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहाराइणियं गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से पाडिपहिया उवागच्छिज्जा, ते णं पाडिपहिया एवं वइज्जा आउसंतो समणा! के तुब्भे? कओ वा एह? कहिं वा गच्छिहिह? जे तत्थ सव्वराइणिए से भासिज्ज वा वागरिज वा। राइणियस्स भासमाणस्स वा वियागरेमाणस्स वा णो अंतरा भासं भासिज्जा। तओ संजयामेव अहाराइणियाए गामाणुगामं दूइजिज्जा॥१२८॥
भावार्थ - रत्नाधिक साधु या साध्वी के साथ विहार करते हुए मार्ग में कोई पथिक सामने मिले और पूछे कि हे आयुष्मन् श्रमण! तुम कौन हो? कहाँ से आ रहे हो? और कहाँ जाओगे? तो वहाँ जो दीक्षा में बड़ा साधु हो वह उत्तर देवें, उनके उत्तर देते समय अन्य कोई साधु बीच में न बोले, किन्तु यतना पूर्वक रत्नाधिक के साथ विहार करे।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में बताया है कि - साधु को आचार्य, उपाध्याय एवं रत्नाधिक साधुओं के साथ विहार करते समय किस तरह चलना चाहिये। ___ शंका - इस सूत्र में आचार्य आदि के साथ विहार करने के प्रसंग में साधु-साध्वी का उल्लेख किया है। जबकि साधु-साध्वी एक साथ विहार नहीं करते हैं ?
समाधान - उपरोक्त वर्णन सूत्र शैली के अनुसार किया गया है। साधु-साध्वी एक
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